Sunday, December 28, 2008

हुक्मरान पीछे रह गए


कुछ आंखें सपना देखती हैं। सारी उम्र। बंद होने तक। उम्मीद के साथ। कि कोई उनकी भी सुनेगा। बदलेगी जिंदगी। बेहतर होगी। यह मजबूरी का सपना है। इसलिए कि उसने सीमा पर लड़कर जिंदगी खपा दी। ताकि मुल्क सपना देख सके। महफूज रहे और तरक्की करे। वह मुल्क के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभा गया। मगर हुक्मरान पीछे रह गए। जानबूझकर या अनजाने में। आयोगों में उलझे। छठे वेतन आयोग में। एक छड़ी लेकर चला आ रहा है उसका भविष्य। जंतर-मंतर तक आया। पैदल चलकर। उसने उम्मीद का साथ नहीं छोड़ा है। शायद इस बार..।

Thursday, December 18, 2008

युद्ध नहीं है विकल्प

मुंबई पर हुए आतंकी हमले के बाद में अचानक टेलीविजन का हमला शुरू हो गया है, जहां हर दूसरा आदमी यह कहता दिखाया जाता है कि भारत को चुप नहीं बैठना चाहिए और निर्णायक कदम उठाते हुए पाकिस्तान के अंदर चल रहे आतंकी ठिकानों पर हमला कर देना चाहिए। नवनिर्वाचित अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के इस बयान ने इस बहस में आग में घी का काम किया है कि किसी भी संप्रभु राष्ट्र को अपनी रक्षा के लिए कोई भी कदम उठाने का अधिकार है। जनता के स्तर पर यह सवाल बार-बार पूछा जा रहा है कि विश्व व्यापार केंद्र पर अलकायदा हमले के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान के खिलाफ जैसी कार्रवाई की, भारत क्यों नहीं कर सकता? कुछ तथाकथित समझदार लोग ‘सीमित युद्ध की दलील दे रहे हैं लेकिन यह बताने को कोई तैयार नहीं है कि दो परमाणु शक्ति संपन्न देशों के बीच ‘सीमित युद्ध की सीमा क्या होगी और कौन उसे नियंत्रित करेगा। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का पूरा फलक देखते हुए यह समझना कठिन नहीं है कि ऐसा सीमित या पूर्ण युद्ध छेड़ना दरअसल जेहादी तत्वों, आईएसआई और पाकिस्तानी सेना के हित में होगा। वे यही चाहते हैं। आईएसआई ने पिछले शनिवार को अपनी एक अंदरूनी बैठक में यह बात कही थी कि भारत नियंत्रण रेखा पर फौजें जमा कर सकता है। इसका जवाब देने के लिए पाकिस्तान को अपनी पश्चिमी सीमा से सैनिक हटाकर उन्हें नियंत्रण रेखा पर तैनात करना होगा। अफगानिस्तान से लगने वाली पश्चिमी सीमा और वजीरिस्तान के इलाके में पाकिस्तानी सेना के करीब एक लाख जवान तैनात हैं, जो तालिबान को रोकने का प्रयास कर रहे हैं। एक तरह से इन जवानों की तैनाती अमेरिका के हित में है। आईएसआई के बयान का मूल उद्देश्य भारत की तैयारी के खिलाफ कार्रवाई से ज्यादा पश्चिमी देशों और खासकर अमेरिका को यह संदेश देना है कि अपनी सीमाओं की रक्षा के लिए वह सैनिक हटा लेगा और तब तालिबान के खिलाफ अमेरिकी लड़ाई कमजोर पड़ जाएगी। भारत-पाकिस्तान युद्ध की स्थिति में जेहादी और पाकिस्तानी सेना दोनों राहत महसूस करेंगे क्योंकि इस लड़ाई में उन्हें जानमाल का भारी नुकसान हो रहा है। एक भारतीय अधिकारी ने कहा है कि भारत के पास ताजा स्थिति से निपटने के लिए ज्यादा विकल्प नहीं हैं लेकिन वह विकल्पहीन भी नहीं है। भारत के लिए यही बेहतर होगा कि वह कूटनीतिक दबाव के जरिए अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए पाकिस्तान को घेरे। पाकिस्तान की अंदरूनी हालत बहुत अच्छी नहीं है। पूरा समाज, राजनीति और देश अपने आप से लड़ रहा है। इनमें कई समूह और संगठन ऐसे हैं जो अपना हित साधने के लिए चाहेंगे कि भारत युद्ध में उतरे। अगर यह पूर्ण युद्ध न हो तब भी स्थितियां कमोबेश वैसी ही हो जाएं, जैसी 2001 में संसद पर आतंकवादी हमले के बाद बनी थीं। संसद पर हमले के बाद तत्कालीन वाजपेयी सरकार ने सड़क और वायु संपर्क तोड़ दिए थे। नियंत्रण रेखा पर फौजों की तैनाती हुई थी और शांति प्रक्रिया रोक दी गई थी। पाकिस्तान में लोकतंत्र की बहाली के बाद सबसे बड़ा झटका आईएसआई और पाकिस्तानी सेना को लगा। दोनों का महत्व देश की राजनीति में बहुत कम रह गया है। लोकतंत्र आने से जेहादी तत्वों को भी संकट का सामना करना पड़ा है। ऐसे में यह पाक सेना और आईएसआई के हित में होगा कि भारत-पाकिस्तान पर हमला कर दे ताकि उनकी भूमिका फिर से महत्वपूर्ण हो जाए। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान अपनी भौगोलिक स्थिति की वजह से अमेरिका के लिए महत्वपूर्ण है। वह भारत से निकटता से बावजूद पाकिस्तान से अपने संबंध बिगाड़ना नहीं चाहेगा। शायद यही वजह है कि राष्ट्रपति बुश ने भारत-पाकिस्तान के बीच बिगड़ती स्थिति को देखते हुए तत्काल अपनी विदेश मंत्री कोंडोलीजा राइस को दोनों देशों के दौरे पर भेजा। भारत में अगले चार महीने में आम चुनाव होंगे। इस संदर्भ में भारत और खासतौर पर सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए आम जनभावना की उपेक्षा करना आसान नहीं होगा। अगर टेलीविजन चैनलों की मानें तो बुधवार को गेटवे आफ इंडिया पर जमा करीब एक लाख लोगों ने चीख-चीखकर कहा कि भारत को सीधी, कड़ी और निर्णायक लड़ाई छेड़ देनी चाहिए। जाहिर है यह कूटनीति और विश्व राजनीति की समझ रखने वाले विशेषज्ञों की राय नहीं है लेकिन चुनाव में इस तरह के लोगों की राय मायने रखती है। भारत के राजनीतिक दलों के लिए इस जनभावना को समझना और उसके उबाल के साथ आनन-फानन में कोई कार्रवाई न करना जरूरी है अन्यथा वह उन्हीं तत्वों के हाथ में खेल जाएगा, जिनसे वह लड़ना चाहता है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी ने अपनी प्रारंभिक प्रतिक्रियाओं में संयम का परिचय दिया है। उन्होंने विकल्पों की बात की है लेकिन उसमें अंतिम विकल्प पर जोर नहीं दिया है। विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान के उच्चायुक्त शाहिद मलिक को बुलाकर अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए आतंकवादियों की सूची दी है। मुखर्जी ने कहा है कि भारत अगला कदम उठाने से पहले पाकिस्तान के जवाब की प्रतीक्षा करेगा। राजनीतिक स्तर पर शब्द युद्ध जारी है लेकिन दक्षिण एशिया की भौगोलिक और राजनीतिक स्थिति के संदर्भ में इसे निर्णायक नहीं माना जा सकता। अगर भारत चुनावी दबाव को झेलते हुए पाकिस्तान के साथ सीधा टकराव टाल दे तो यह उसके हित में है। यही पाकिस्तान के कुछ उन समूहों को भारत का माकूल जवाब हो सकता है, जो चाहते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय ताकतों की नजर अफगानिस्तान से लगने वाली पाक सीमा से हटकर भारत-पाक नियंत्रण रेखा और उसके साथ कश्मीर पर आ जाए। भारत के लिए इस समय युद्ध विकल्प नहीं हो सकता और जहां तक पाकिस्तान का सवाल है, अमेरिका और नाटो अपने हित में अपने ढंग से उसे संभालने के लिए बाध्य होंगे।

Wednesday, December 17, 2008

चौतरफा काम, अब शुरू करो



स्वागत शीलाजी! फिर दिल्ली की सिरमौर। तीसरी बार। कम को ही मिलता है ऐसा सेवा का मौका। जनता अब अदल-बदल में माहिर। लेकिन फिर विश्वास जताया। विकास का किया काम। उसका ही पाया ईनाम। जो न किया, उसका सबक भी रखो याद। दस सीटें भी काट चुकी जनता इन दस सालों में। बहुत हुआ जश्न। अब हार उतारो, मुकुट धरो। शुरू करो। चौतरफा काम, अब शुरू करो। हो गया राजतिलक। गठन मंत्रिमंडल का। अब देरी क्या। देखो कितना पास आ गया खेल राष्ट्रमंडल का।

Wednesday, December 10, 2008

बकरीद में कुर्बानी फर्ज है


दिल्ली की जामा मस्जिद। भव्य और आलीशान। छत पर दो सुंदर बच्चियां। एक इबादत में। दूसरी, मस्ती में। खिलंदड़ापन। बेफिक्र। बेपरवाह। बेखबर। कि यह साल का आखिरी महीना है। इस्लामी कैलेंडर का। जुल-हिजा। बकरीद। जिसमें कुर्बानी फर्ज है। अब्राहम के बेटे इस्माइल की याद। खुदा ने इस्माइल को बचा लिया। कुर्बानी के लिए भेड़ भेजकर। उसका त्योहार। खास नमाज। गले मिलना। फिर खाना-पीना। लेकिन इस बार जोर सिर्फ इबादत पर। दूसरों की भावनाओं की कद्र पर। मुंबई हमले का भी असर। दारुल-उलूम की अपील। गोवध के खिलाफ। अल्लाह यह इबादत जरूर कुबूल करेगा।