Monday, September 22, 2008

हम इस जज्बे को सलाम करते हैं


दिल्ली का निगमबोध घाट। बंधे हाथ। झुकी हुई बंदूकें। डबडबाई आंखें। होंठ भींचकर आंसू रोकने की कोशिश। ऐसा होता है। खासकर दिलेरी और हिम्मतवरी की तस्वीर में। हौसले को सलाम करने में। कर्मयोगी को विदाई देने में। एक नायक की विदाई। असली हीरो की। कहते हैं यही दुनिया है। भारतीय दर्शन में आने-जाने की जगह। लेकिन यह विदाई स्थूल की है। शरीर की। जज्बे की नहीं। हौसले और भावना की नहीं। आतंक से लड़ने के फैसले की नहीं। हमारी भी आंखें नम हैं। पर हम उस जज्बे को सलाम करते हैं जिसका नाम है मोहन चंद शर्मा।

Thursday, September 18, 2008

हम चंदामामा के यहां जाएंगे


उसकी सतह खुरदुरी है। ऊबड़-खाबड़। रहने लायक नहीं। पानी नहीं। हवा नहीं। गुरुत्वाकर्षण नदारद। सबकुछ जैसे उड़ता फिरता है। हमें इससे क्या? मामा का घर कैसा भी हो, अच्छा लगता है। चंदामामा का घर। जो पहले गए वे चांद पर गए। हम चंदामामा के यहां जाएंगे। जिन्हें बचपन से जानते हैं। जो हमारे सपने में आते हैं। मां उन्हें कटोरी में उतार लेती है। अपने भाई को। जब चाहे बुला ले। सारा मामला घरेलू है। बस चंद्रयान का इंतजार था। जैसे स्कूल बस का। वह हमें सपने की दुनिया में ले जाएगा। बहुत जल्दी।

Wednesday, September 17, 2008

अपराधी सदन में रहेंगे तो जेल में कौन रहेगा


एक चेहरे का कटा-पिटा होना। लोहे की जालियों के पीछे। जेल के सींखचों का पूर्वाभ्यास। यह हकीकत है। यही सच है इस तस्वीर का। सिनेमा होता तो चेहरे पर दूसरा चेहरा लगा लेते। बच जाते। छिप जाते। कोशिश तो थी ही। पर न नरेंद्र बचा न सुनील। यानी कि माननीय सुनील कुमार पांडेय। बिहार के विधायक जी। सदन की शोभा। आदरणीय। जनप्रतिनिधि। और अपहर्ता। जेल जा रहे हैं। सारी जिंदगी नहीं रहेंगे। अपने दोनों चेहरों के साथ। आजीवन कारावास। अपराधी सदन में रहेंगे तो जेल में कौन रहेगा। विधायक?

Tuesday, September 16, 2008

भीड़ एक कलाकृति है


भीड़ एक कलाकृति है। अद्वितीय। वह अनगढ़ हो सकती है। पर दरअसल गढ़ती वही है। अपनी सामूहिकता में। वही बनाती है। और नाराज हो जाए तो बिगाड़ देती है। वह चाहे तो सब बदल जाए। समाज। दुनिया। दुनिया की राय। उससे ऊपर कोई नहीं। सामने कोई नहीं टिकता। न टाटा-बिड़ला। न दिखावटी ममता। न बुद्ध, न देव। वह स्वयं विश्वकर्मा है। अपने हाथों और हुनर पर भरोसा है उसे। बेहतर हो कि उसका व्याकरण पढ़ लें। भाषा सीख जाएं। जितनी जल्दी हो सके। क्योंकि उसके सामने फरेब नहीं चलता। चोलबे ना।