Monday, July 5, 2010

खिलखिलाती रहेगी, महंगाई

बड़ी-बड़ी तुर्रम टीमें वापस। बड़े-बड़े तूफान। लैला और फेट वगैरह। अंतत: ध्वस्त। महीनों से झुलसा रही गर्मी। लग रहा मौसम का स्थायी भाव। जाने-जाने को। दिल्ली में आ ही गया। लेट पर लतीफ। मानसून! चले जाएंगे ललित मोदी भी। और अक्टूबर बाद जाएगी। राष्ट्रमंडल खेलों की। हायतौबा भी। आम लोगों की चिंता में। चीखता-चिल्लाता। आएगा-जाएगा। संसद का मानसून-सत्र। जनता के लिए। दर्द भरे दिल लिए। दलों का। आज भर ही भारत-बंद। लेकिन लोगों के बंधे रहेंगे हाथ। उनकी हद-हैसियत से। बेपार। खुली और खिलखिलाती रहेगी। महंगाई।