Friday, February 12, 2010

हे भोले भंडारी! गौरापति


हे भोले भंडारी! गौरापति। गंगाधर। देवाधिदेव। महादेव। यह तो तुम ही हो। अजब-गजब। सामान्य समझ से परे। तीनों काल हिल जाते हैं। तुम्हारे डमरू से। अतीत, भविष्य और वर्तमान। गूंजती है। वही ध्वनि। विभिन्न अर्थो के साथ। गोपेश्वर की तरह। गोपियों की लीला में। नीलकंठ बनकर। हलाहल पीते। ताकि सिर्फ अमृत रहे बचा। सबके लिए। विवाह मंडप में। धरती से कैलाश तक। हर रूप विलक्षण। कल्याणकारी। जो भी है सत पथ अनुगामी। यह दिन तुम्हारा। रात्रि भी। बल्कि समस्त चराचर। कृपा बनाए रखना। आज और हमेशा। हम पर। और सब पर। जो हमारे साथ हैं।