Tuesday, February 2, 2010

संगीत की सरहदें नहीं होतीं


संगीत की सरहदें नहीं होतीं। दायरे नहीं होते। वह हर जगह मौजूद। दरीचे खोलता। पूरब से पश्चिम तक। हर विधा में। एक जसे ही होते हैं। उसको सराहने वाले। शास्त्रीय या सिनेमाई। कभी विलंबित। कभी द्रुत। पार कर जाते हैं सुर। सारी बाधाएं। उतरते दिल की गहराइयों में। सिर चढ़कर बोलता जादू। कि मुंह से निकल जाता है। बेसाख्ता। जय हो। साधु! साधु! पहले ऑस्कर। फिर गोल्डन ग्लोब। अब ग्रैमी। संगीत का नोबेल। रुहानी रहमानी संगीत। एक छोटी सी हंसी। और बयान। यह दीवाना बना देने वाली खुशी। मेहरबान हुआ है ऊपर वाला। तीसरी बार।
साभार आज समाज

4 comments:

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

‘जय हो!’ की और रहमान की जय हो!!!
आपको भी साधुवाद।

Amrendra Nath Tripathi said...

ई कामयाबी सलूट करै लायक अहै ..
थोरै मा सार लिखेव , आपौ का सलूट !
हम आप से कुछ बात करा चाहित है ( काहे , ई
तौ आप भासै से समझि गा होइहैं ..) .. आपके
अवधी जोगदान पै बाति करै का है ..
होइ सकै तौ टेलीफून नं . दीन जाय .. आभार ,,,

कडुवासच said...

......संगीत की सरहदें नहीं होती ..... सत्य...सत्य...सत्य वचन!!!!

mirtue ek satya said...

ब्लॉग जगत का घिनौना चेहरा अविनाश

भारतीय ब्लॉगिंग दुनिया के समस्त ब्लॉगरों से एक स्वतंत्र पत्रकार एवं नियमित ब्लॉग पाठक का विनम्र अपील-
संचार की नई विधा ब्लॉग अपनी बात कहने का सबसे प्रभावी माध्यम बन सकता है, परन्तु कुछ कुंठित ब्लॉगरों के कारण आज ब्लॉग व्यक्तिगत कुंठा निकालने का माध्यम बन कर रह गया है | अविनाश (मोहल्ला) एवं यशवंत (भड़ास 4 मीडिया) जैसे कुंठित
ब्लॉगर महज सस्ती लोकप्रियता हेतु इसका प्रयोग कर रहे हैं |बिना तथ्य खोजे अपने ब्लॉग या वेबसाइट पर खबरों को छापना उतना ही बड़ा अपराध है जितना कि बिना गवाही के सजा सुनाना | भाई अविनाश को मैं वर्षों से जानता हूँ - प्रभात खबर के जमाने से | उनकी अब तो आदत बन चुकी है गलत और अधुरी खबरों को अपने ब्लॉग पर पोस्ट करना | और, हो भी क्यूं न, भाई का ब्लॉग जाना भी इसीलिए जाता है|

कल कुछ ब्लॉगर मित्रों से बात चल रही थी कि अविनाश आलोचना सुनने की ताकत नहीं है, तभी तो अपनी व्यकतिगत कुंठा से प्रभावित खबरों पर आने वाली 'कटु प्रतिक्रिया' को मौडेरेट कर देता है | अविनाश जैसे लोग जिस तरह से ब्लॉग विधा का इस्तेमाल कर रहे हैं, निश्चय ही वह दिन दूर नहीं जब ब्लॉग पर भी 'कंटेंट कोड' लगाने की आवश्यकता पड़े | अतः तमाम वेब पत्रकारों से अपील है कि इस तरह की कुंठित मानसिकता वाले ब्लॉगरों तथा मोडरेटरों का बहिष्कार करें, तभी जाकर आम पाठकों का ब्लॉग या वेबसाइट आधारित खबरों पर विश्वास होगा |
मित्रों एक पुरानी कहावत से हम सभी तो अवगत हैं ही –
'एक सड़ी मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है', उसी तरह अविनाश जैसे लोग इस पूरी विधा को गंदा कर रहे हैं |