Sunday, March 9, 2008

अच्छा लगता है कुछ चीजों का अचानक बदल जाना


कुछ चीजें अचानक बदल जाती हैं। बदलते हुए अच्छी लगती हैं।
सारा लुत्फ इसी में है। अचानक होने में। गरज यह कि सब तय वक्त पर हुआ तो क्या हुआ। बारिश के मौसम में पानी, सर्दियों में सर्दी।
मजा तो तब है कि भरी गर्मी यक-ब-यक बरसात हो। धूप जलाना भूल जाए। सूरज की धमक की जगह धुंध चादर हो। बेवक्त की शहनाई।
कभी-कभी अच्छी लगती है।
जैसे फूलों को। मधुमक्खियों को। लुटियन हवेली पर फहराते झंडे को।
अखरता है लोगों का बदल जाना। मौसम को हम समझते हैं।
लोगों का क्या करें।

Wednesday, March 5, 2008

दंभ की पराजय


मधुकर उपाध्याय
ब्रिस्बेन में आष्ट्रेलिया नहीं हारा। उसका घमंड हारा। दंभ की पराजय हुई। ब्रिस्बेन फटाफट क्रिकेट में १४ साल का निर्विवाद बादशाहत के पराभव का गवाह बना। और पराजय भी ऐसी-वैसी नहीं। घिसट-घिसटकर नहीं जीते। शान से जीते। इस तरह कि आष्ट्रेलिया को हाशिए पर खड़ा कर दिया। कामनवेल्थ बैंक त्रिकोणीय श्रृंखला का फाइनल बेस्ट आफ थ्री होना था और उसमें तीसरे मैच की नौबत ही नहीं आई। एडीलेड की जरूरत नहीं पड़ी। भारत ने पहले दौ मैच जीतकर आस्ट्रेलिया का काम तमाम कर दिया। यह जगह क्रिकेट में भारत की बादशाहत का आगाज है। श्रृंखला में दुनिया की तीन सर्वश्रेष्ठ टीमें थीं। बादशाह आष्ट्रेलिया और उसे हराने की कुव्वत रखने वाली दो टीमें भारत और श्रीलंका। खेल कौशल में निपुण और मानसिक रूप से बहुत मजबूत भारत ने आष्ट्रेलिया का दंभ चकनाचूर कर दिया। भारतीय टीम के खेल पर संदेह नहीं था। लेकिन आष्ट्रेलिया के घमंडी व्यवहार पर विजय प्राप्त करना ज्यादा बड़ी चुनौती थी। आष्ट्रेलिया को पता था कि उसको असली चुनौती भारत से मिलने वाली है। उसने अपने सारे लटके झटके इस्तेमाल कर लिए और सिडनी टेस्ट में तो हद ही कर दी। हरभजन को नस्लभेदी कहा। अंपायरों ने ग्यारह फैसले आष्ट्रेलिया के हक में किए। सिडनी में भारत हार गया पर उस पराजय ने टीम को एकजुट कर दिया। यही भारत की ताकत बन गई। यही किसी विजेता टीम की असली ताकत है भी। बाधा को अपनी शक्ति में बदल लेना। आष्ट्रेलिया यह नहीं कर पाया। भारत ने कर दिखाया। आष्ट्रेलिया और भारत में एक अन्य फर्क साफ दिखा। शेन वार्न और मैकग्रा जैसे खिलाड़ियों की गैरमौजूदगी ने जहां आष्ट्रेलिया को कमजोर किया वहीं प्रवीण कुमार और पीयूष चावला ने भारत को मजबूती दी। आष्ट्रेलिया आने वाले दिनों में और कमजोर होगा, क्योंकि अब उसके पास गिलक्रिस्ट भी नहीं होगा। ब्रिस्बेन गिली का आखिरी वनडे था। भारत ने द्रविण, गांगुली और कुंबले का विकल्प ढूंढ लिया। आष्ट्रेलिया को अभी यह कवायद करनी है और यह निश्चित रूप से आसान नहीं होगा। इनके अलावा एक अंतर और था धोनी और पोंटिंग का। पोंटिंग का घमंड सिर चढ़ गया था जबकि धोनी अब भी कस्बे का मिलनसार छोरा है। उसके पास ताकत है, ताकत का घमंड नहीं। इसी का नतीजा था कि भारत जीता। हरभजन ने मैदान पर भांगड़ा किया। छाती ठोंककर घूमे। खुशी से दम फूल रहा था। सांस चढ़ी हुई। बस इतना कहा, मैं बहुत खुश हूं। आई एम सो प्राउड। गो इंडिया। आखिरी विकेट गिरा तो आष्ट्रेलियाई उम्मीदें ध्वस्त हो गईं। हालांकि उनके पास अंत तक होप्स की शक्ल में उम्मीद थी। पर घुटने टेके हुए। बाल नोंचते। दंभ का अंत इस तरह हुआ कि तिरंगा मैदान में उतर आया। पूरे स्टेडियम में। उसमें एक रंग और जुड़ा हुआ था- शालीनता के साथ गर्व का।