
Saturday, May 31, 2008
आठ दशमलव एक

आठ दशमलव एक। शक्ति का एक पैमाना। जमीन के ऊपर हो तो खूबसूरत बदलाव। जमीन के भीतर हो तो जलजला। भारी तबाही। दोनों का ही पूर्वाभाष होता है। एक अचानक आता है। दूसरा धीरे धीरे। अचानक संभलने का मौका नहीं। दूसरे में व्यक्ति भविष्य की कल्पना कर सकता है। सामंजस्य स्थापित कर सकता है। सामंजस्य जलजले के बाद भी होता है। लेकिन दुखद। वर्षों पीड़ादायी। यादें रह-रहकर कचोटती। अतीत वर्तमान बन जाता। राजतंत्र से लोकतंत्र। जनता का शासन। खुली हवा में सांस। मनपसंद सरकार। सुनहरे भविष्य की तस्वीर।
Sunday, May 11, 2008

यह कला का सम्मान है। प्रतिभा का आदर है।
उपलब्द्धि का यशोगान है।
इतना कुछ ऐसे ही नहीं मिल जाता।
ऐसा दुर्लभ संयोग।
माधुरी दीक्षित राष्ट्रपति भवन में अकेले नहीं थी।
कई अन्य थे। अपने-अपने शिखर पर।
कुछ और ऊपर जाने की संभावना के साथ।
नए क्षितिज की तलाश में।
नए रास्ते बनाते गढ़ते।
हिंदुस्तान की जरखेज जमीन।
अनगढ़ प्रतिभाएं कहीं भी उग आती हैं।
कुछ की पहचान हो पाती है।
परवान चढ़ती हैं।
काश बाकी की भी पहचान हो पाए।
उस दिन राष्ट्रपति भवन बहुत छोटा पड़ जाएगा।
जिंदगी जलसा होगी।
Subscribe to:
Posts (Atom)