Sunday, May 11, 2008



यह कला का सम्मान है। प्रतिभा का आदर है।

उपलब्द्धि का यशोगान है।

इतना कुछ ऐसे ही नहीं मिल जाता।

ऐसा दुर्लभ संयोग।

माधुरी दीक्षित राष्ट्रपति भवन में अकेले नहीं थी।

कई अन्य थे। अपने-अपने शिखर पर।

कुछ और ऊपर जाने की संभावना के साथ।

नए क्षितिज की तलाश में।

नए रास्ते बनाते गढ़ते।

हिंदुस्तान की जरखेज जमीन।

अनगढ़ प्रतिभाएं कहीं भी उग आती हैं।

कुछ की पहचान हो पाती है।

परवान चढ़ती हैं।

काश बाकी की भी पहचान हो पाए।

उस दिन राष्ट्रपति भवन बहुत छोटा पड़ जाएगा।

जिंदगी जलसा होगी।

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