
दिल्ली का निगमबोध घाट। बंधे हाथ। झुकी हुई बंदूकें। डबडबाई आंखें। होंठ भींचकर आंसू रोकने की कोशिश। ऐसा होता है। खासकर दिलेरी और हिम्मतवरी की तस्वीर में। हौसले को सलाम करने में। कर्मयोगी को विदाई देने में। एक नायक की विदाई। असली हीरो की। कहते हैं यही दुनिया है। भारतीय दर्शन में आने-जाने की जगह। लेकिन यह विदाई स्थूल की है। शरीर की। जज्बे की नहीं। हौसले और भावना की नहीं। आतंक से लड़ने के फैसले की नहीं। हमारी भी आंखें नम हैं। पर हम उस जज्बे को सलाम करते हैं जिसका नाम है मोहन चंद शर्मा।