दिल्ली का निगमबोध घाट। बंधे हाथ। झुकी हुई बंदूकें। डबडबाई आंखें। होंठ भींचकर आंसू रोकने की कोशिश। ऐसा होता है। खासकर दिलेरी और हिम्मतवरी की तस्वीर में। हौसले को सलाम करने में। कर्मयोगी को विदाई देने में। एक नायक की विदाई। असली हीरो की। कहते हैं यही दुनिया है। भारतीय दर्शन में आने-जाने की जगह। लेकिन यह विदाई स्थूल की है। शरीर की। जज्बे की नहीं। हौसले और भावना की नहीं। आतंक से लड़ने के फैसले की नहीं। हमारी भी आंखें नम हैं। पर हम उस जज्बे को सलाम करते हैं जिसका नाम है मोहन चंद शर्मा।
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5 comments:
एक सप्ताह के अंदर पहले हिंदुस्तान की राजधानी नई दिल्ली, फिर यमन की राजधानी साना और अब पाकिस्तान की राजधानी इसलामाबाद। आतंक के धमाके जहां कहीं भी हों, पीड़ा एक जैसी होती है और पीड़ित आम निर्दोष लोग ही होते हैं। इनकी जितनी भी निंदा की जाए, कम होगी।
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दुःख तब होता है कि कुछ निहित स्वार्थ से प्रेरित लोग ऐसी शहादत पर भी प्रश्न खड़ा कर देशद्रोहियों की मदद करने लगते हैं। वीर शर्मा को हमारा नमन।
जांबाज शहीद को मेरा नमन!!
आप हिन्दी की सेवा कर रहे हैं, इसके लिए साधुवाद। हिन्दुस्तानी एकेडेमी से जुड़कर हिन्दी के उन्नयन में अपना सक्रिय सहयोग करें।
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सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणी नमोस्तुते॥
शारदीय नवरात्र में माँ दुर्गा की कृपा से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हों। हार्दिक शुभकामना!
(हिन्दुस्तानी एकेडेमी)
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जज्बे को हमारा भी सलाम।
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