Thursday, May 27, 2010
पूरे देश का यह चित्र
मई का महीना। गर्मी ही गर्मी। पसीना ही पसीना! दुबके हुए लोग लू से। धू-धू-धू! आग का बवंडर/पछाड़ खाता/मकानों, मैदानों, नदियों, वीरानों पर! घर में रहना त्रासद! सड़कों पर घोर यंत्रणा! देश झुलस रहा लू के। झोंकों से। सुबह-दोपहर। जसे तापघर। सुलगती शाम और रात। पंखों का चकराता सिर। कलपते कूलर। हांफते एसी। दम फूला विद्युत-घरों का! बिजली की बाय-बाय! पानी की हाय-हाय! सरकारों को और। मार गया काठ। उसका वितरण तंत्र। नाकाम। जनता के अपने पाइप। अपना वितरण। पूरे देश का यह चित्र। सत्य और विचित्र!
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