Thursday, September 18, 2008

हम चंदामामा के यहां जाएंगे


उसकी सतह खुरदुरी है। ऊबड़-खाबड़। रहने लायक नहीं। पानी नहीं। हवा नहीं। गुरुत्वाकर्षण नदारद। सबकुछ जैसे उड़ता फिरता है। हमें इससे क्या? मामा का घर कैसा भी हो, अच्छा लगता है। चंदामामा का घर। जो पहले गए वे चांद पर गए। हम चंदामामा के यहां जाएंगे। जिन्हें बचपन से जानते हैं। जो हमारे सपने में आते हैं। मां उन्हें कटोरी में उतार लेती है। अपने भाई को। जब चाहे बुला ले। सारा मामला घरेलू है। बस चंद्रयान का इंतजार था। जैसे स्कूल बस का। वह हमें सपने की दुनिया में ले जाएगा। बहुत जल्दी।

1 comment:

.*.+*CIN*+.*. said...

HOLA, SALUDOS DESDE MÉXICO.
SU LITOGRAFÍA SE VE GENIAL.

CINTHIA MIRÓN CASTOLO