
उसके कई चेहरे हो सकते हैं। चेहरे बदल सकता है वह। कभी कुछ, कभी कुछ। कहीं भी जा सकता है। मुंह उठाए। बिना बुलाए। उसकी हरकत नहीं बदलती। न मंसूबे। न नाम। इस बार शायद उल्फा। हर बार होते हैं। आम लोग शिकार। धमाका-खूनखराबा-विध्वंस-मौतें। जिंदगी हारती नहीं। बस सहम जाती है थोड़ा। डरकर धीरे-धीरे कदम बढ़ाती है। इस बार पूर्वोत्तर क्षेत्र में। असम में। गुवाहाटी। कोकराझार। कामरूप। बारपेटा। जाहिर है, अब सिर्फ शब्द काफी नहीं है। शोक-संवेदना से काम नहीं चलेगा। लोग कह रहे हैं-हम साथ हैं। एकजुट हैं। पर हमारे नेता कहां हैं?
1 comment:
नेता एकजुट नहीं होंगे। वे सिर्फ हमें एकजुट होने को कह रहे हैं।
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