Friday, October 31, 2008
उसकी हरकत नहीं बदलती
उसके कई चेहरे हो सकते हैं। चेहरे बदल सकता है वह। कभी कुछ, कभी कुछ। कहीं भी जा सकता है। मुंह उठाए। बिना बुलाए। उसकी हरकत नहीं बदलती। न मंसूबे। न नाम। इस बार शायद उल्फा। हर बार होते हैं। आम लोग शिकार। धमाका-खूनखराबा-विध्वंस-मौतें। जिंदगी हारती नहीं। बस सहम जाती है थोड़ा। डरकर धीरे-धीरे कदम बढ़ाती है। इस बार पूर्वोत्तर क्षेत्र में। असम में। गुवाहाटी। कोकराझार। कामरूप। बारपेटा। जाहिर है, अब सिर्फ शब्द काफी नहीं है। शोक-संवेदना से काम नहीं चलेगा। लोग कह रहे हैं-हम साथ हैं। एकजुट हैं। पर हमारे नेता कहां हैं?
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1 comment:
नेता एकजुट नहीं होंगे। वे सिर्फ हमें एकजुट होने को कह रहे हैं।
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