
स्वागत शीलाजी! फिर दिल्ली की सिरमौर। तीसरी बार। कम को ही मिलता है ऐसा सेवा का मौका। जनता अब अदल-बदल में माहिर। लेकिन फिर विश्वास जताया। विकास का किया काम। उसका ही पाया ईनाम। जो न किया, उसका सबक भी रखो याद। दस सीटें भी काट चुकी जनता इन दस सालों में। बहुत हुआ जश्न। अब हार उतारो, मुकुट धरो। शुरू करो। चौतरफा काम, अब शुरू करो। हो गया राजतिलक। गठन मंत्रिमंडल का। अब देरी क्या। देखो कितना पास आ गया खेल राष्ट्रमंडल का।
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