
ऐसे भी बनती हैं कलाकृतियां। कई बार। अचानक और अनचाहे। जहां उम्मीद न हो। ऐसी जगह। बन जाता है कैनवस। खुला मैदान। रंग-बिरंगे धुएं के गुबार में। जैसे एक बेतहाशा बड़ी पेंटिंग। कुछ संगीनें उसमें। एक टैंक। और नुक्ता सा तिरंगा। ऊपर। पेड़ों के बीच में। लहराते हुए झांककर देखता। अपने बच्चों को। एनसीसी के कैडेट। मजबूत इरादों के साथ। अंजाम देते। पूरी लगन, तैयारी और प्रशिक्षण के साथ। उठाते कला के स्तर तक। युद्धाभ्यास को। वे कहीं भी पैदा कर देंगे कला। आश्वस्त करते। कि वे हैं। रंग भरने के लिए।
1 comment:
आपकी रिपोर्ट भी किसी पेण्टिंग से कम नहीं है।
साधुवाद।
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