
प्रश्न- दलित कौन हैं? उत्तर- वोट बैंक।देश की राजनीति का अगला केंद्र। एक नोट, जिसे भुनाना चाहते हैं।सब उसके खेवनहार। कहते हैं वह किंगमेकर है।सब नाच गा रहे हैं। भजनमंडली की तरह।ढोल, मजीरा, ताशा, ढमाढम।सुर एक है- हम दलितन के, दलित हमारे।सब्जबाग दिखाते। दलित समझदार है। जानता है जन्नत की हकीकत। छला गया है।कई हजार साल से। फिर तैयारी है। कोशिश है कि वह न बदले। बना रहे विनय पत्रिका अंदाज में। बदला तो बहुत कुछ बदल जाएगा।काश, बदल ही जाए।
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दलितों ने अपना रास्ता बहुत धीरे-धीरे तय किया है। वे शैक्षिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े जरूर थे लेकिन स्वतंत्रता के पहले हुए आंदोलनों के बाद से वे एक निश्चित राह पर चले। पहले अंबेडकर के साथ, फिर जगजीवन राम के साथ। अब मायावती के साथ। हां, अब वे भी नेतृत्व पाकर खुलकर जातिवाद करने लगे हैं। डर निकल रहा है। वोट बैंक बने हैं, लेकिन कहीं न कहीं से उनका उभार भी है।
खुद का नेतृत्व महसूस करने के बाद उनकी एकता और बढ़ी हुई लग रही है और लोगों को अब वे भ्रमित करने की स्थिति में हैं। लोग उनके पीछे भाग रहे हैं और वे भगा रहे हैं।
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