- पार्ट टू
नेहरू और एडविना की मुलाकात 1922 में ही हो गई होती लेकिन आजादी की लड़ाई और पिता मोतीलाल नेहरू के स्वभाव की वजह से यह संभव नहीं हुआ। एडविना माउंटबेटन से मिलने पानी के जहाज से लंदन से मुंबई पहुंचीं, जहां से उन्हें दिल्ली आना था, लेकिन तब तक प्रिंस ऑफ वेल्स का काफिला और माउंटबेटन इलाहाबाद पहुंच गए। इलाहाबाद के जिलाधीश ने मोतीलाल नेहरू से प्रिंस ऑफ वेल्स को अपने घर आनंद भवन में ठहराने का आग्रह किया पर उन्होंने इनकार कर दिया। उल्टे इस यात्रा का भारी विरोध रोकने के लिए मोतीलाल और उनके बेटे जवाहर को गिरफ्तार कर लिया गया। जवाहर की उम्र उस समय 32 साल थी। जाहिर है एडविना को इस पूरे घटनाक्रम की कोई जानकारी नहीं थी और 1946 तक नहीं हुई। 1946 में नेहरू माउंटबेटन के निमंत्रण पर मलाया पहुंचे और वहीं पहली बार एडविना से मिले। एक जलसे के दौरान अचानक भीड़ बढ़ने और अवरोध टूटने से भगदड़ मच गई। माउंटबेटन और नेहरू ने हाथ से हाथ मिलाकर एडविना को घेरे में ले लिया और उन्हें बचाकर बाहर निकाला। आजादी के संघर्ष और संभावित विभाजन के तनाव के बीच 1947 में फील्ड मार्शल क्लॉड ऑकिनलेक के निजी सचिव शाहिद हमीद ने अपनी डायरी में लिखा, ‘एडविना और नेहरू इतना करीब आ गए थे कि लोगों को आपत्ति होने लगी थी। इसी दौरान जिन्ना के मित्र और बलूच नेता याहिया बख्तियार ने कहा, ‘नेहरू और एडविना के बीच प्रेम परवान चढ़ चुका था। इसी दौरान एसएस पीरजादा भी दिल्ली में थे, जो बाद में पाकिस्तान के विदेश मंत्री बने। उनके मुताबिक, एडविना के प्रेमपत्रों का एक पुलिंदा जिन्ना के पास पहुंच गया। जिन्ना ने चिट्ठियां पढ़ीं और करीबी लोगों के साथ सलाह-मशविरे के बाद उन्हें एडविना को लौटा दिया। हालांकि इससे उनके मन में यह बात घर कर गई कि माउंटबेटन वही करेंगे जो एडविना चाहेंगी और वो नेहरू के खिलाफ नहीं जाएंगे। इन चिट्ठियों में एक में लिखा था, ‘डिकी माउंटबेटन आज रात बाहर रहेगा, तुम दस बजे के बाद आ जाना। एक और चिट्ठी, ‘तुम अपना रुमाल भूल गए थे। डिकी की नजर पड़ती, इससे पहले मैंने उसे छिपा दिया।एक और चिट्ठी में लिखा था, ‘मुझे सबकुछ याद है। शिमला यात्रा, मशोबरा की पहाड़ियां, घुड़सवारी और तुम्हारा स्पर्श। दरअसल, 1947 में माउंटबेटन वायसराय बनकर भारत आए और एडविना को अचानक जैसे जिंदगी का एक और मकसद मिल गया। माउंटबेटन के साथ एडविना के संबंध कभी सहज नहीं रहे और उनकी जिंदगी में कई बार तलाक की नौबत आई, जिसके पीछे एडविना के एक से ज्यादा प्रेम प्रसंग भी थे। हर प्रसंग के बारे में माउंटबेटन को मालूम था लेकिन एडविना की खुशी और अपनी शादी बचाए रखने की इच्छा से उन्होंने इसे नहीं रोका।
7 comments:
यह सब पढने की इच्छा बहुत दिनों से थी जो आपके लिखे से पूरी हुई ..क्या आप उस किताब का नाम बता सकते हैं जहाँ से यह प्रसंग ले रहे हैं .शुक्रिया
दिलचस्प है.
बहुत खूब...
पढ़कर मजा आया. दोनों के प्रेम के चर्चे भारत में सबकी जुबान पर थे और आज भी हैं....
रोचक है!
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गुलाबी कोंपलें
जब आपने इस किस्से की पड़ताल शुरू की है तो हमें उम्मीद है कि इस प्रसंग के बारे में कुछ अन्तरंग और अनसुनी बातें भी सुनने को मिलेंगी।
जारी रखिए...। हम सुनने आते रहेंगे।
रोचक प्रस्तुतिकरण.......
क्यों पंडित जी, बहुत देर-देर से क्यों लिखते हैं।
अखबार के ऊपर जो हर दिन छपता है उसे भी किसी एक जगह पर डाल देते तो अच्छा होता। उसके ढेर सारे प्रशंसक हैं। टाइप की एक भी गलती नहीं हो तो अच्छा है क्योंकि ढेरों शब्द नये होते हैं और लोग भाषा भी सीख रहे होते हैं।
कामता प्रसाद लखनऊ से
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