Tuesday, November 17, 2009
पत्थर या लखौरी ईंटों से बनी दीवार
एक दीवार थी। उसमें एक खिड़की रहती थी। बकौल विनोद कुमार शुक्ल। लेकिन नहीं दिखती वह सबको। लगे रहे दिन भर। श्रीलंकाई भाई। ठोंकते-पीटते रहते। सीना-पसीना हो गए। कि मिल जाए खिड़की। द्रविड़ दीवार में। दाखिल हो सकें अंदर। द्रविड़ ने बंद कर दी खिड़की। चार तक गिनने के बाद। ताकि वहीं रुक जाए गिनती। समझ आ जाए सबको। मुहावरेदारी। दीवार की। पत्थर की। या लखौरी ईंटों से बनी। पुरानी। पर उतनी ही मजबूत। बल्कि पहले से कुछ अधिक आक्रामक। ऊपर से देखती दुनिया। ग्यारह हजार सीढ़ियां चढ़कर।
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4 comments:
http://www.youtube.com/watch?v=1ZADwvQ0tQI
Sir ji kam shabdon mein sab kuchh kah jaane ki yahi kala sikhna chahta hoon. Gaagar mein Saagar bharne ki kla jeevan mein aani hi chahihe. Mere blog per aakar apni aalochnaaon se margdarshn kren....
Sir ji kam shabdon mein sab kuchh kah jaane ki yahi kala sikhna chahta hoon. Gaagar mein Saagar bharne ki kla jeevan mein aani hi chahihe. Mere blog per aakar apni aalochnaaon se margdarshn kren....
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