Tuesday, February 9, 2010

बेरहम और निहायत खतरनाक, वही बर्फ


प्रकृति का अपना नियम-कानून। उसकी हर छटा। हर अदा। तस्वीर सी। समंदर से लेकर पहाड़ तक। लेकिन जो सुंदर है। स्निग्ध, सौम्य और शांत। वही हो सकता है जानलेवा। बेरहम और निहायत खतरनाक। वही बर्फ। सफेद चादर सी। रुई के फाहों सी हल्की। इंतजार करते हैं सब। कि खेल सकें। प्रकृति की देन मानकर। नाराज हो प्रकृति। गुस्सा आए उसे। जसे हिमस्खलन। खिलनमर्ग से आगे। दरक गया पहाड़। आ गिरा नीचे। धड़ाम से। तब क्या करें। सिवाय प्रार्थना के। हे वसुधा! बनाए रखना कृपा हम पर। तुम तो मां हो। ऐसी सजा मत दो। अपनी संतानों को।

1 comment:

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

प्रकृति का एक रंग यह भी...! अद्‌भुत