संस्कृत में एक शब्द है- लास्य। एक भाव। प्रेम का। प्रेम से भी अधिक आकर्षण का। मोहिनीअट्टम। या राधा-कृष्ण का लास्य भाव। कहीं रहें, खिंचे चले आएं। अपभ्रंस में लासा इसी से बना। यानी कि गोंद। चिपक जाने वाला। जहां लग जाए, छूटे नहीं। चिपका ही रहे। लासा नहीं देखता कि चिपकने वाला कौन है। गुण-अवगुण नहीं परखता। एक ल्हासा है। तिब्बत की राजधानी। यथा नाम, तथा गुण। चीन उससे चिपक गया है। चिपकना लासा का प्राकृतिक गुण है। वह उसे नहीं छोड़ सकता। पर चीन तो छोड़ सकता है। ल्हासा को।
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1 comment:
लास्य भाव में तो प्यार छुपा रहता है सर। वहां तो बलात्कार वाला लास्य चल रहा है।
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