Tuesday, November 10, 2009

कि आसमान से गिरें सफेद फूल

शुरू में अच्छा लगता है उसका आना। रहता है इंतजार। आसमानी तोहफे का। बच्चे-बड़े सब बेसब्र। कि आसमान से गिरें सफेद फूल। रूई के फाहों की तरह। उड़ते-उड़ते। बैठ जाएं यहां-वहां। दरख्तों पर। मोटरगाड़ियों, घरों पर। सिर पर। बस कुछ दिन। उसके बाद होने लगती है कोफ्त। रास्ते बंद। आना-जाना मुहाल। सर्दी। हाड़ कंपा देने वाली। घर से निकलना। ख्वाहिश के दायरे से बाहर। लेकिन यह सब बाद में। अभी तो आमद हुई है। ऊपर की चोटियों पर। पहले खुमार की तरह। तब उतरेगी। आहिस्ता-आहिस्ता।

1 comment:

ओम आर्य said...

वाह बहुत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति !