कई बार जो नहीं होता, वही सबसे प्रमुख हो जाता है। जीवन में। लिखे हुए शब्द में। तस्वीर में। ऐसा बार-बार होता है। खासकर राजनीति में। उसकी मुकम्मल तस्वीर कभी नहीं बनती। ऐसी तस्वीरों में उस अनुपस्थित को देखना कठिन नहीं है। साफ नजर आता है। दिखता है कि कोई झुक गया है। हाथ जोड़े। विनत। हालांकि वह तस्वीर में नहीं है। ऐसा न होता तो बैंसला जमीन से ऊपर न चल रहे होते। अकड़कर। तस्वीर में कुछ लिखा नहीं होता। छवि होती है। पर इसमें लिखा है कि कोई हार गया है।
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2 comments:
सही सोच है.
bahut sahi soch hai lekin ek baat hai hum log hindustaan ke baare me nahi soch rahe hai sab apne baare me soch rahe hai
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