Wednesday, June 25, 2008

जो केक काट रहे हैं, जश्न के धर्मगुरु हैं

जश्न धर्म है। अपने आप में पूर्ण। बेहद्दी। सीमारहित। उसका मुलम्मा चढ़ाना नहीं पड़ता। चढ़ जाता है। बाखुद। और वह भी ऐसा-वैसा नहीं। बिल्कुल पक्का। कभी न उतरने वाला। सालों बाद तक। दशकों-सदियों तक। उसमें सब शामिल होते हैं। जो अनुपस्थित हैं, वे। और जो आने वाले हैं, वे भी। कोई भेदभाव नहीं। उन्हें विरासत में मिलता है यह धर्म। पच्चीस साल पहले एक जश्न हुआ। विश्वकप जीतने पर। खुमार आज तक कायम है। जो केक काट रहे हैं, जश्न के धर्मगुरु हैं। भारत जश्न की गंगोत्री को सैल्यूट करता है तो ठीक ही तो करता है।

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