समुद्र का नीला होता है। आसमान का रंग भी। अथाह गहराई। बेपनाह ऊंचाई। और विस्तार। इस सबके बावजूद बला की शांति। यह जानते हुए कि उनके अंदर क्या है। खबरों की दुनिया भी ऐसी ही है। नीला सागर। विराट। अनंत। संभावनाओं से भरपूर। उथलापन न हो तो। किनारे का रंग पीला होता है। इसलिए जरूरी है कि गहरे उतरो। थपेड़ों से डरे बिना। देखो। समझो। मझधार में जाओ। भंवर से खेलो। जहां तक हो सके। क्योंकि मोती तट पर नहीं होते। वहां बस सतही गंदगी है। और कीचड़।
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9 comments:
vakai bahut himmat ka kam he aapka......carry on.plz remove your word verification,it will be easy to send comments.
अच्छे विचार. हर वक़्त की जरुरत. शुक्रिया. शुभकामनायें.
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उल्टा तीर
jeevan bhi to aisa hi hai !
मधुकर जी बचपन में आपको बी बी सी पर सुना है । जब आप पूरे भारत की यात्रा कर रहे थे । आपको ब्लॉगजगत में देखकर अच्छा लगा ।
मधुकर जी, सादर नमस्ते, आप से रूबरू होने का मौका हिन्दी पत्रकारिता के एक छात्र के रूप में भारतीय जनसंचार संस्थान में मिला। आपके द्वारा सुनायी गई कहानी पर प्रधान सर १२ जून को भी चर्चा कर रहे थे। आपसे ब्लॉग पर अब तो नियमित रूबरू होने का मौका है। भारतीय जनसंचार संस्थान को आपके ब्लॉग पर देखकर बहुत अच्छा लगा..
बरसों बाद अपने संस्थान के दर्शन(फोटो में ही सही)आपके ब्लॉग पर हुए। यादें ताजा हो गईं। खासतौर पर वो बातें पढ़कर, जो करीब 8-9 साल पहले दीक्षांत समारोह में हमें भी सुनने को मिली थीं। आप जैसा वरिष्ठ पत्रकार फिर उन बातों को दोहरा रहा है, तो मतलब साफ है, कि इन विचारों में आज भी दम है। कलमकारों की नई पीढ़ी को इन विचारों की सबसे ज्यादा जरूरत है।
सर ग्रामीण पत्रकारों के लिए भी अपना संदेश देकर उन्हें आगे बढने की प्रेरणा दें....
मधुकरजी
आपका स्वागत है यहां। जनसत्ता में आपको पढ़ने का सिलसिला जो छूट गया था अब यहां पर जुड़ जाएगा।
बचपन में आपको बी बी सी पर सुनना बहुत अच्छा लगता था। कुछ दिन पहले तक लोकमत समाचार में पढ़ा था। अब तो ब्लाग पर हैं, अच्छा है अब अक्सर आपकी चुम्बकीय भाषा को पढ़ पाऊंगी।
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