Saturday, June 14, 2008
बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे।
बह रही है भ्रष्टाचार की गंगा। सभी हाथ धो रहे हैं। कोई ज्यादा कोई कम। पुलिस उसमें डूबी है। उसी में रमी है। सबको मालूम है। पता है। जन्नत की हकीकत। कौन बोले। कौन मुंह खोले। बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे। बांधना मुश्किल है। बंध जाए तो सवाल होगा- बिल्ली किसकी है। कहा जाएगा- मेरी बिल्ली, मुझसे म्याऊं। बात इतनी नहीं है कि पैसे कौन ले रहा है। ये भी है कि देता कौन है। लेन-देन में दोनों दोषी। माया का चक्कर है। सबको भरमाता है। बचे सो उतरहिं पार।
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4 comments:
जीवन के लेनदेन की कहानी
आख़िर में जवाब तो यहीं देना पड़ेगा,,,और कहीं नहीं...सरग...नरक यहीं..बिलकुल यहीं.
जो इस कलयुगी गंगा में नहा नहीं पाते उनका जन्म व्यर्थ चला जाता है
राजेश रोशन ब्लॉगिंग का गिद्ध है।
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