उसमें बेपनाह ताकत है। जिंदगी बख्शने की। वह न हो तो जीना मुहाल हो जाए। गला सूखे। सांस उखड़ जाए। पर इतना पानी? कि चारो ओर से घेर कर रख दे। जड़ से उखाड़ दे। ले जाए अपने साथ सब। बर्तन, भांडे। माल असबाब। अनाज। सब कुछ। सिर्फ पता बचे। घर न बचे। हर साल। तबाही हो तो क्या। मानस की जात है। पानी का केरा बुलबुला नहीं। जूझता है। बचा लेता है जिंदगी। दुश्वारियां हैं। दिन कठिन हैं। पांव पानी में। कंधे पानी से झुके हुए। लेकिन सिर नहीं झुका है। बुलबुला होता तो फूट जाता। आदमी है कि डटा हुआ है।
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6 comments:
sundar rachana ke liye badhai. likhte rhe.
बधाई, इतनी अच्छी रचना के लिए, बहुत ही अच्छे तरीके से कहा आपने.
बहुत तरल पीस-आदमी बहुत साहसी है-विषमताओं से निपटना जानता है.
बहुत गहरी बातें। सारगर्भित पोस्ट।
Blog ki balaon mein foota hai ek naya Bubula. Dimag ki Khurafat (Kurak nahi) mil rahi hai, Dil ki nami se. Laharon se be-hisab ulajhata Bharatnama pahuanchey sahil tak. Inhi ummedon ke sath.
MADHAV CHATURVEDI
sir mujhe aapke rachnaye padhne ka awsar mila ..bahut acchi lagi..aapko bahut shubhkamnaye....umeed hai kuch aur bhi acchi panktiya jaldi he blog me milenge...
anita
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