
एक नदी है। कुछ नाराज लोग हैं। नारे लगाते। झंडा उठाए। कुछ भगवा। कुछ तिरंगा। नदी को चलकर पार करते। तवी नदी। जम्मू में। यह नई तस्वीर है। लेकिन तस्वीर में नयापन कुछ भी नहीं है। मन में गुस्सा हो तो नदी-पहाड़ कौन देखे। सोलह साल पहले नदी सरयू थी। जगह अयोध्या। मुद्दा धर्म। पुल पर पुलिस थी। इसलिए नदी राह बन गई। यही जम्मू में हो रहा है। पर ऐसी हालत क्यों। बात क्यों नहीं करते। मिल-बैठकर। कि नदी का पानी आग बुझा दे। गुस्सा शांत कर दे। रास्ता निकाल दे। अमन का। शांति का।
6 comments:
पानी में ही आग लगाती है सियासत,
फिर मौन रहो राग लगाती है सियासत,
सुन्दर आलेख..
***राजीव रंजन प्रसाद
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यह है उन्माद... किसी को नही बख्सेगी
तुष्टिकरण से भड़की आग, पानी से कब बुझी है?
एक दिन तो यह होना ही हे..
सुन्दर लेख , धन्यवाद
बढ़िया आलेख..आभार.
आपने बहुत अच्छा लिखा है....
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