हम पक्के खिलाड़ी हैं। असली खिलाड़ी। चौबीस कैरेट। कोई मिलावट नहीं। जो चाहे जांच ले। बड़े खेल के खिलाड़ी ठहरे। छोटा-मोटा खेल नहीं खेलते। कोई कच्चापन नहीं। न अनाड़ीपन। इसी में असली औकात पता चलती है। निकम्मा आदमी काम का साबित होता है। सबसे कमजोर सबसे मजबूत निकल जाता है। इसमें कोई मायाजाल नहीं है। गो कि अंधेरा है। प्रकाश नजर नहीं आता। साइकिल चलते-चलते घूम जाती है। यहां कोई इंतजार नहीं करता। कि चार साल बाद बीजिंग जाएंगे। धंस के देखो, भाई। यह हमारा ओलंपिक है। अमर खेल है।
जन्म-पहली सितंबर 1956
जन्म स्थान-उत्तर प्रदेश के अयोध्या में।
शिक्षा-अवध विश्वविद्यालय, फैजाबाद से साइंस ग्रेजुएट। भारतीय जनसंचार संस्थान, दिल्ली से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा।
करियर-1975 में औपचारिक रूप से पत्रकारिता में प्रवेश। समाचार भारती, यूनीवार्ता, भाषा, लोकमत समाचार और बीबीसी हिंदी की कई वर्षों तक सेवा की। इतिहास और समाजशास्त्र में गहन रुचि। पत्रकारिता ने इनमें चीजों और घटनाओं से प्राथमिक श्रोत के आधार पर देखने तथा लिखने का पक्ष जोड़ दिया। इसी दिलचस्पी ने दांडी यात्रा की पुनरावृत्ति के लिए प्रेरित किया। उस ऐतिहासिक कूच के 65 साल बाद 1995 में 400 किलोमीटर की पैदल यात्रा की। भारतनामा के तहत पूरे देश का भ्रमण। 65 हजार किलोमीटर की यात्रा की। पहले स्वतंत्रता संग्राम 1857 के डेढ़ सौ साल पूरे होने पर मेरठ के विक्टोरिया पार्क से दिल्ली के लाल किले तक पैदल यात्रा। भारतीय प्रेस परिषद का 1991 से लेकर 1994 तक सदस्य रहा। वर्तमान में आज समाज दैनिक हिंदी समाचार पत्र के समूह संपादक पद पर कार्यरत।
2 comments:
कमाल का है ये कार्टून।
:) बहुत बढ़िया.
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