Wednesday, August 20, 2008

उन्हें भी तो दो कोई पानी चुल्लू भर

आपन-आपन मेड़ संभालो/बढ़ो आत है पानी। सावन-भादों में हरहराता घुसा ही चला आता है। सालों से। हर बरस बारिश का इंतजार। फिर बाढ़ और उसका कहर। गांव, कस्बे, शहर, महानगर। मुहल्ले, कॉलोनियां, सड़कें और खेत। सब कहीं जसे जल-कारावास। कितने मरे पिछले साल और कितने अबकी बार। कितना चौपट होगा जन-धन। हाथ पर धरे हाथ-गिनते-गुनते रहिये। तरक्की पर है देश। अगले साल देखना, होगी ज्यादा बर्बादी। जिनके निकम्मेपन से मरते हैं बेवजह लोग। उन्हें भी तो दो कोई पानी चुल्लू भर।

2 comments:

Udan Tashtari said...

सटीक..

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

जिनके निकम्मेपन से मरते हैं बेवजह लोग। उन्हें भी तो दो कोई पानी चुल्लू भर...
मधुकर जी, ये ऐसे बेशर्म हैं जो चुल्लू भर पानी में डूबेंगे नहीं, बल्कि उसे भी गटक जाएंगे...