Thursday, August 14, 2008
एक तस्वीर का इकसठवां साल
एक तस्वीर का इकसठवां साल। फिर भी ताजगी। नएपन का झोंका। वह पुरानी नहीं पड़ी। बासी नहीं हुई। धूल नहीं जमी उसपर। लगता है कि अब भी कुछ बचा है। सब खो नहीं गया। भ्रष्टाचार, खूनखराबे, जोड़-तोड़ और धमाकों में। सुकून होता है कि हम बचे हुए हैं। रंगों का मतलब है। हवा है। खुले मैदान हैं। हरियाली और खेत हैं। एक दूरदराज गांव में। नंगे बदन बच्चे। तिरंगा लेकर दौड़ना खेल नहीं है। ख्याल है। कद्र होनी चाहिए इसकी। यह नहीं रहा तो हम कहां रहेंगे। आजादी की शुभकामनाएं।
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1 comment:
आपका ब्लॉग पठनीय है
साथ ही नया विचार भी देता है...
मैं बार- बार आना चाहूँगा इस ब्लॉग पर.....
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