Thursday, August 21, 2008
छप्पन साल बाद धोबीपाट
हर चेहरा किताब है। बहुत कुछ लिखा होता है उसपर। सबके लिए। इत्मीनान। हौसला। खुशी। संतोष। यही सब इस चेहरे पर है। साफ-साफ इबारत। कि कोई भी पढ़ ले। जो स्कूल न गया हो वह भी। यह सुशील सूरत है। नजफगढ़ के नए नवाब की। भारी उपलब्धि। हल्की सी हंसी। सुशील के पास कांसे का तमगा है। छप्पन साल बाद धोबीपाट। एक चेहरा यहां नहीं है। पर दिखता है। विजेंर का। उसके घूंसे का। ताकत और कौशल का। पदक उसे भी मिला। पर वह कुछ और चाहता है। कि रंग बदल जाए पदक का। सुनहरा हो जाए। हम भी यही चाहते हैं।
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3 comments:
बहुत अच्छी लेखन शैली. बधाइयाँ.
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sri
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विजेता को बधाई! जज़्बे को सलाम।
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