अशोक की लाट में चार शेर हैं। चारों ओर देखते हुए। पीछे-पीछे चलने वाली भेड़चाल नहीं। वे चारों साथ होते हैं। हमेशा। पर दिखते तीन ही हैं। जो सामने है, वर्तमान है। जो नहीं है, भविष्य। आने वाले कल की तस्वीर। वह हमेशा दूसरी ओर से दिखता है। भविष्य की ओर से। यह भारत की नई त्रिमूर्ति है। मिथकीय नहीं। सचमुच की। खेलों की त्रिमूर्ति। नया राष्ट्रीय प्रतीक। राष्ट्रीय गौरव का चिह्न। तीन को देखिए। और चौथे को देखते रहिए। दिल्ली में, 2010 में। लंदन में, 2012 में। और उसके बाद।
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1 comment:
मधुकर जी
इस त्रिमूर्ति का व्यापकीकरण करने के लिए खेलोँ के प्रति जुनून चाहिए. वैसे आप सक्षम हैँ. अगर गिल साहब मेँ ईमानदारी से यह जुनून पैदा हो गया तो हम इस त्रिमूर्ति से भी आगे जाएँगे. भविष्य अच्छा होगा
सन्दीप त्रिपाठी
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