
एक किस्सा। बिल्कुल ताजा। आज की ही बात। जम्बूद्वीपे भरतखंडे हरियाणा प्रांते। एक शहर भिवानी। एक स्कूल। एक प्रशिक्षक। और तीन घटनाएं। एक के बाद एक। ताबड़तोड़। पहले अखिल। फिर जितेंद्र और उसके बाद विजेंद्र। ऐसा कभी-कभार होता है। कि एक हिंदुस्तानी कस्बा दुनिया में चमके। यह कोई जादू नहीं है। न ही चमत्कार। लेकिन है वैसा ही कुछ। कि आंखें चुंधिया कर रह जाएं। भरोसा न हो। वहां बस दो चीजें थीं। मेहनत और लगन। हां, एक चीज और थी-हरियाणवी अंदाज। उसने मुक्का चलाया और चल गया। असली सिक्के की तरह।
7 comments:
चल गया नही जी छप गया दुनिया भर मे :)
चल गया नही जी छप गया दुनिया भर मे :)
bade gourav ka vishay hai .
भिवानी में चल रहे इस बोक्सिंग स्कूल को और भी अधिक प्रोत्साहन दिया जाए. और इसी की तर्ज़ पर कुछ और भी खेलों के स्कूल खोले जायें ताकि अगले ओलंपिक में कुछ पदक तो मिलें!
क्या बात है ...एक अच्छी पोस्ट के लिए शुक्रिया ...
शाबाश भिवानी,...तुझे सलाम।
सच भिवानी के लाल, ले आओ तुम स्वर्ण करो रोशन अपने देश, घर और कोच(जगदीश जी-तीनों के कोच) का नाम रोशन।
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