Sunday, August 3, 2008

वैसे ग्रहण बुरा नहीं है

कल का ग्रहण आसमानी था। सूरज का। फिर चांद का होगा। सब हवा-हवाई। असली ग्रहण तो यहां है। धरती पर। भारत में। कुछ पर आंशिक। कुछ पर पूर्ण। कुछ के भविष्य और उम्मीदों पर। वैसे ग्रहण बुरा नहीं है। कटता रहे तो। जैसे परमाणु ग्रहण। ग्रहण के दिन ही ग्रहण कटा। करार आया। थोड़ा सा। कुछ दिनों में पूरा करार। फिर चुनाव ग्रहण लगेगा। पांच साल बाद। सबकी सांस अटकी होगी। वह भी कट जाएगा। लेकिन किसे काटेगा। और कितना। पता नहीं। फिर कटा-पिटा नतीजा। वही ग्रहण करेंगे लोग। ले-देकर।

1 comment:

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

ग्रहण-चर्चा में बहुत कुछ ग्रहण करने योग्य मिला। सबसे बड़ी उम्मीद बँधाने वाली बात ये है कि ग्रहण चाहे जैसा भी हो इसका कट जाना तय है।
सुन्दर, विचारणीय...