Tuesday, August 5, 2008
जो आग लगाकर उसे तापती
अमरनाथ श्राइन बोर्ड विवाद। इस अध्याय का दूसरा दुखांत। एक पखवाड़े से जम्मू अशांत। पहले श्रीनगर धधकता रहा। अब जम्मू में सब कुछ जाम। सम्हाले नहीं संभल रहा आक्रोश। जनता सड़कों पर निरंतर। कर्फ्यू से नहीं कमजोर। न फौजी कवायद से। मनवाने-दबाने का दुष्चक्र। लोकतांत्रिक अधिकारों का भी हनन। पीछे इसके भी बांटकर वोट जोड़ने की राजनीति। जो आग लगाकर उसे तापती रहती। उसे बुझाने के भी प्रपंच अनेक। फोन पर आपस में बतियाती। जनता से संवाद करने से कतराती।
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1 comment:
भारतीय संविधान की उद्देशिका (preamble) एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य की स्थापना का संकल्प दुहराती है। इसी संविधान की शपथ लेकर ये नेतागण मन्त्री आदि पदों पर आसीन होते हैं, किन्तु उनकी हरकतें इन मूल्यों को रोज अपमानित करती हैं। इसे मक्कारी और देशद्रोह न कहें तो क्या कहें?
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