Saturday, August 9, 2008

आंखों पर जैसे भरोसा नहीं रहा

एक चिड़िया होती है बया। उसका घोसला देखने लायक। पेड़ से लटका। हवा में झूलता। चमत्कार ही लगता है। मूंज के लंबे रेशे जोड़कर बना। चोंच से बुना हुआ। बेमिसाल मजबूती और जगह पूरी। बया के पूरे कुनबे के लिए। चीन ने बया से सीखा। बस मूंज की जगह इस्पात। मुड़ा-तुड़ा। एक घोसला बनाया। पूरी दुनिया के लिए। उसके साझा सपने के लिए। पंख पसारने की पूरी संभावना के साथ। अब यह तुम पर है खिलाड़ियो! उड़ो, जितना उड़ सकते हो। बया की खुशी के लिए।

शुक्रवार को पूरी दुनिया ने एक सपना देखा। खुली आंखों से। इतना चमत्कारिक सपना कि दुनिया पलक झपकाना भूल गई। वहां उड़ने वाली परियां थीं, हवा में नाचती पतंगें भी। संगीत और नृत्य था। मानव समाज के उत्कर्ष का समूहगान था।
प्राचीनता आधुनिकता को गले लगा रही थी। यह सब एक घोसले में था। यह साबित करते हुए कि दरअसल एक घोसला पूरी दुनिया के लिए काफी है। बल्कि इतना बड़ा है कि उसमें सबके सपने समा सकें। चीन की राजधानी बीजिंग में ‘एक विश्व, एक सपना ध्येय वाक्य वाले 29वें ओलंपिक खेलों की शुरुआत कल्पनातीत थी। नाचती लेजर किरणों के प्रभाव से चमत्कृत करने वाला उद्घाटन संभवत: ओलंपिक इतिहास का भव्यतम समारोह था, जिसे सदियों तक याद रखा जाएगा। समारोह को घोसले में मौजूद 90 हजार भाग्यशाली लोगों के साथ दुनिया भर में कई अरब लोगों ने देखा और अपनी आंखों पर भरोसा करना छोड़ दिया। उद्घाटन समारोह भावना, एकता, कला, सौंदर्य, शक्ति और कल्पनाशीलता का एक ऐसा संयमित विस्फोट था, जो बेमिसाल था और रहेगा। दुनिया को बारूद, कागज और कुतुबनुमा देने वाले चीन ने अपनी पूरी कहानी और संस्कृति को करीने से और तरतीबवार दुनिया के सामने रखा। रेशम मार्ग और समुद्री यात्राएं परत दर परत खोलीं। आधुनिकता को अपने ढंग से प्रदर्शित किया और दिखा दिया कि भविष्य उसका है। और उस भविष्य के सपने में सब शामिल हैं। इसमें साबित होगा कि कौन सबसे तेज, सबसे ऊंचा, सबसे ताकतवर है। इसलिए दिल थामकर बैठिए और वह देखिए, जो आजतक नहीं देखा गया।

2 comments:

Udan Tashtari said...

हुई तो बहुत ही भव्य शुरुवात है.

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

अफ़सोस कि हमने टीवी देखना बन्द कर दिया है। आपके बताने के बाद हम कल्पना करके काम चला लेंगे।