Monday, August 11, 2008
कुछ थमा, नेताओं का मन रमा
जनता के दुख-दर्दों, फजीहतों। जीवन-मरण के मुद्दों की तलाश। मंदिर मामलों के प्रभारी। आडवाणी, संघ परिवारी। अमरनाथ को कैसे छोड़ें, की लाचारी। चुनाव की आहट। जीतेंगे कैसे बिना टकराहट। अपनी-अपनी की खातिर। एक दल ने आग लगाई। दूसरे ने भड़कायी। अटकते-अटकते शुरू हुई बातचीत, फिर अटकी। अलगाव के आक्रामक तेवर। बंद और अब चक्काजाम। कश्मीर की हसीं वादियां। दिलकश समां। कौम का गम बहुत था। कुछ थमा, नेताओं का मन रमा।
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3 comments:
सटीक..
achchee bat hai
नेताओं को लानत भेंजता हूँ...
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