Thursday, August 14, 2008
लोक पर तनी तंत्र की लाठी
लोक पर तनी तंत्र की लाठी। जनतंत्र का जीता जागता विद्रूप। सरकारों का जनता से यही सीधा संबंध। कहावतों, नीति वाक्यों के उलट-पलट गये अर्थ। लेकिन बदल जाना था जिन्हें, वे रह गयीं जस की तस। ज्यादा रूढ़-क्रूर। मसलन, जिसकी लाठी उसकी भैंस। सरकार की लाठी, सरकार की भैंस। हक मांगते लोगों पर दनादन-ताबड़तोड़। सत्ता का यही चलन। इसी में मारे गये ग्रेटर नोएडा में चार किसान। जनता सर्वोपरि, का खुला उपहास। एकता में अनेकता की उड़ती हर जगह खिल्ली। कर गुजर कर राजनीति भीगी बिल्ली।
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2 comments:
उफ्!
दुखद.
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