Tuesday, August 19, 2008

इज्जत से या बेआबरू होकर

न्यूटन ने कहा जो ऊपर जाता है, नीचे जरूर आता है। सो तुम भी आ गए मियां मुशर्रफ। ये तो होना ही था। यह प्रकृति है। विज्ञान है। जो आया है, विदा भी होगा। इज्जत से हो या बेआबरू होकर। विदाई आखिरकार विदाई होती है। उसमें दु:ख होता है। पर केवल दु:ख नहीं होता। घर से बेटी विदा हो तो परिवार के आंखों में खुशी। तानाशाह जाए तो मुल्क की धड़कन में। लोकतंत्र की सांसों में। इसमें तानाशाह की आंखें नम होती हैं। खुशी बाहर होती है। सड़क पर। गली-मोहल्ले में। शहर में। देश में।

4 comments:

बालकिशन said...

बहुत अच्छा लिखा आपने.
आपकी शैली बहुत ही रुचिकर है.
पढ़ कर अच्छा लगा.

Rajesh Roshan said...

न्यूटन ने कहा जो ऊपर जाता है, नीचे जरूर आता है।

बहुत ही गहरी बात है

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

बेहद सच्ची बात कही आपने। साधुवाद।

Udan Tashtari said...

अच्छा लिखा-सही है.