Wednesday, August 27, 2008

अब तो ख्वाबों में मिलेंगे फराज

एक ऐसा शायर, जिसने जिंदगी के दोनों रंग चुने और उन्हें बखूबी निभाया। उन्हें अगर इश्क की नाजुकी और विरोध की तीखी आवाज की बुलंदी का शायर कहा जाता है तो यह गलत नहीं है।

अहमद फराज हालिया दौर के बड़े शायरों
में शुमार होंगे। एक ऐसा शायर, जिसने जिंदगी के दोनों रंग चुने और उन्हें बखूबी निभाया। उन्हें अगर इश्क की नाजुकी और विरोध की तीखी आवाज की बुलंदी का शायर कहा जाता है तो यह गलत नहीं है। अहमद फराज को इसी बुलंद विरोध की वजह से जेल जाना पड़ा। और जनरल जिया के जमाने में कई बरस निर्वासन में बिताने पड़े। कल शाम इस्लामाबाद में उनके इंतकाल से न केवल उर्दू शायरी को झटका लगा बल्कि सच और जिंदगी की हिमायत करने वाले एक नफीस इंसान से यह दुनिया महरूम हो गई। अहमद फराज बर्रे सगीर की आवाज थे। पूरे दक्षिण एशिया में उनकी शायरी का बोलबाला था। वह अक्सर दिल्ली आया करते थे। डेढ़ साल पहले फराज एक जलसे में शिरकत करने दिल्ली आए थे। इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में उनसे भेंट हुई। आधे घंटे तक फराज पाकिस्तान की शायरी और विरोध की आवाज की अहमियत पर बोलते रहे। उन्होंने सिर्फ अपना हवाला नहीं दिया, तमाम लोगों का नाम लेकर कहा कि उन सबको अपनी शायरी की वजह से कई-कई बार जेल जाना पड़ा। अल्फाज की तल्खी शायद इसी से उपजती है। जहां बोलने पर पाबंदी हो, वहीं सबसे ज्यादा आवाजें होती हैं। और वही आवाज असरदार होती है। मैंने उनसे हिंदुस्तान की शायरी के बारे में पूछा। उनके मुंह से सिर्फ एक नाम निकला-फिराक गोरखपुरी। फराज ने कहा कि उसके बाद ज्यादा कुछ कहने लायक है नहीं। हिंदी में शायरी होती जरूर होगी पर वह उर्दू में मौजूद नहीं है। इसलिए उसके बारे में कुछ नहीं कह सकता। अहमद फराज बार-बार कहते रहे कि हिंदुस्तान की कविता का वह मेयार, वह दर्जा इसलिए नहीं है कि यहां अपनी कविता के लिए जेल जाने वाले नहीं हैं। जिन्होंने जिंदगी का वो रंग नहीं देखा है वे उसे बयान भी नहीं कर सकते। कविता पढ़े लिखों की आरामगाह नहीं है। वह जिंदगी से आती है जिसमें बहुत पेचीदगियां हैं और वह जुल्फों के पेचोखम से ज्यादा मुश्किल और टेढ़ी है। शायरी जिंदगी के साथ चलती है और कई बार उसके आगे भी। अहमद फराज का मानना था कि अगर शायरी वक्त और समाज का सिर्फ आइना बनकर उसे उसी की छवि दिखाती रहे तो उसके ज्यादा मानी नहीं रह जाएंगे। शायरी बेआवाज की आवाज है। समाज के उस तबके से ताल्लुक रखती है, जिसके पास खोने के लिए कुछ नहीं है। अगर वह तरक्कीयाफ्ता नहीं है और बदलाव की दरकार नहीं रखती तो ऐसी शायरी के लिए कूड़ेदान से बेहतर कोई जगह नहीं हो सकती।

8 comments:

siddheshwar singh said...

फ़राज़ साहब को श्रद्धांजलि ! नमन!!

Unknown said...

कविता पढ़े लिखों की आरामगाह नहीं है।-
bilkul sahi sir jee. faraz sahab ko bilkul sahi sandarbh dete hue aapne yad kiya hai-achha lga.

Anita said...

sir,
faraz saheb k bare me padkar acha laga aur afsos hua k aise pyari nazme kahene wala ab humare beech nahi hai...jab wo india aaye the ek awsar tha mulakat ka par ja nahi saki the.....aaj sirf malal hai ....afsos hai....mayusi ho rahi hai....
anita

Udan Tashtari said...

शायर अहमद फ़राज़ साहेब को श्रृद्धांजलि!!

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

मेरे भी श्रद्धा-सुमन यहाँ अर्पित हैं...!

sushant jha said...

सर, हाल ही में फराज साहब को साधना चैनल पर देखा था,वे शायद कभी राजस्थान के नीमराणा आए थे। उसी का रिकॉर्डिंग चल रहा था। वहां उनकी मशहूर शायरी-सुना है लोग उसको आंख भर के देखते हैं-सुना तो फिर फराज का होकर रह गया।उसके बाद जब मैंनें उनके बारे में खोजबीन की तो पता चला कि वो गालिब और मीर की श्रेणी के शायर थे।अच्छी बात ये है कि आज जबकि फराज हमारे बीच नहीं है, उनके न होने का बात सरहदें पार कर हम सबको गमगीन कर रही है। शायद शायरी को यहीं उनका सबसे बड़ा योगदान है।

अनुराग द्वारी said...

टिप्पणी करने की हिम्मत नहीं है ... फिर भी उस शख्स की एक धरोहर मेरे पास है ...जो आपसे बांटना चाहता हूं ...
आपने सबसे पहले मुझे उनका इंटरव्यू लाने भेजा था ... हैबिटैट सेंटर में शाम को बात नहीं हो पाई ...
लेकिन सुबह उन्होंने मुझे बुलाया था ... आधे घंटे का वक्त दिया ... लेकिन बातों बातों में ढाई घंटे कैसे बीते कुछ पता नहीं चला ... जाते जाते एक ट्रेनी .. बड़े शायर के बड़प्पना का कायल बन चुका था ...
पर्स में अभी भी उनका विजिटिंग कार्ड मौजूद है ... जिसे हर वक्त बड़े गर्व से देखता हूं ... खुद से कहता हूं ... ये कार्ड मुझे अहमद फराज़ साहब ने दिया था ... और कहीं से ये ग़जल गूंजने लगती है ...
दिल ही दुखाने के लिए आ ....

अश्विनी मिश्र said...

अहमद फ़राज़ साहब के इंतक़ाल पर सदमा लगा..
फ़राज़ साहब नही रहे मेरा मानना है कि शायद इसलिए कि----
सुना है दुनिया उसके हुनर से वाक़िफ़ थी..
सुना है फरिश्तों में भी शायरी का शगफ़ होता है।

अगर फ़राज़ साहब अब ख़्वाबों में मिलेंगे.. तो---
कहानियां ही सही.. सब मुबालग़े ही सही..
अगर वो ख़्वाब है तो ताबीर कर के देखते हैं...