Saturday, July 5, 2008

नयी नजर और उड़ती तितलियां- दो

स्लामिक देशों में महिलाओं की स्थिति पर महिलाओं ने ही अपने दर्द बयान किए हैं। कई किताबें भी लिखी गई हैं। उन्हीं किताबों की पड़ताल करता लेख, नई नजर और उड़ती तितलियां का दूसरा भाग
मुख्तारन माई पाकिस्तान की हैं। उनकी किताब 'इन द नेम आफ आनर' मुशर्रफ की किताब 'इन द लाइन आफ फायर' से मात्र दो महीना पहले ही आई। मुख्तारन माई न तो बहुत पढ़ी लिखी हैं और न ही लेखिका हैं। मगर, संवेदना और सामाजिक ताने-बाने की जटिलता उस किताब के हर पन्ने से झलकती है। 1972 में पैदा हुईं मुख्तारन बी जटोई इलाके में मीरवाला गांव की रहने वाली हैं। एक स्थानीय बलूच पंचायत ने उन्हें इज्जत के नाम पर सजा सुनाई- उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया जाए। मस्तोई बलूच कबीले के कुछ लोगों ने ऐसा ही किया। आमतौर पर औरतें इस तरह की घटना के बाद आत्महत्या कर लेती हैं लेकिन मुख्तारन उसके खिलाफ बोलीं, लड़ीं, जीतीं और कामयाब रहीं, एक हद तक। अदालत ने बलात्कारियों को सजा सुनाई और कहा कि मुख्तारन को कबीला जुर्माना की पूरी रकम दे। मुख्तारन को विदेश से भी काफी सहायता मिली। दरअसल, मुख्तारन का बड़ा रूप सिर्फ मुकदमा जीतने और गुनहगारों को सजा दिलाने में नहीं दिखता। वह उसके बाद नजर आता है। मुख्तारन ने मीरवाला में पूरी रकम लगाकर लड़कियों के लिए स्कूल खोला क्योंकि उनका मानना था कि पढ़ी-लिखी होने पर उनके साथ इस तरह का अन्याय नहीं होगा। वे अपनी बात कह सकेंगी और उनकी बात सुनी जाएगी। मुख्तारन माई के लिए खतरा अब भी कम नहीं हुआ है। बलात्कारी मस्तोई कुछ समय में जेल से छूटकर गांव लौट आएंगे। धमकियां अब भी मिलती हैं लेकिन मुख्तारन माई का नाम इतना बड़ा हो गया है कोई आसानी से उन्हें छूने की हिम्मत नहीं करेगा। यह बात मुशर्रफ के उस बयान के बाद और साफ हो गई जिसमें उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा था, कि यह कोई बड़ा मुद्दा नहीं है, कुछ औरतें विदेश जाने और पैसे ऐंठने के लिए ऐसी कहानियां सुनातीं हैं। मुशर्रफ उस समय अपनी किताब के प्रचार के सिलसिले में अमेरिका में थे। उनके इस बयान पर दुनियाभर में प्रतिक्रिया हुई और अंततः राष्ट्रपति सचिवालय को कहना पड़ा कि उनके बयान को गलत ढंग से छापा गया है। 29 साल की मुख्तारन माई को अमेरिकी सीनेट को संबोधित करने के लिए बुलाया गया। उसी समय उन्होंने पहली बार गांव के बाहर कदम रखा। टाइम पत्रिका में निकोलस क्रिस्टाफ ने लिखा, मैं नहीं जानता कि गांधी या मार्टिन लूथर किंग को देखने वाले पत्रकारों को क्या अहसास हुआ होगा लेकिन मुख्तारन माई के वजूद में मुझे महानता, सरापा, सिर से पैर तक दिखती है।

2 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

इस्लाम की दुनियाँ औरतों के लिए बंद दुनियां है। वैसे ही जैसे पिंजरे में कैद मैना। मुख्तारन माई तो बहुत पहले ही दुनियाँ भर की महिलाओं की प्रेरणा बन चुकी हैं।

श्रद्धा जैन said...

aapne bahut hi achhi jaankari share ki hai
aapka lekh padh kar sakun mila ki kahi kuch badal raha hai