
राजनीति माया का एक रूप। अनबुझ पहेली। बड़ी बेरहम। कौन दुश्मन, कौन दोस्त। पता नहीं। कल तक साथ थे। किनारे हो गए। कब कौन तिनका बन सहारा दे। करार पर। सभी बेकरार। मची है रार। असलियत से दूर। आंखें मूंदे। अनाड़ी बनने का नाटक। नाटक खूब चलता है। बिना जमाए जमता है। अपनी डफली। अपना राग। अपना हित सर्वोपरि। देशहित बेकार। बसी कुर्सी की चाहत। लेकिन जनता देख रही है। समझ रही है हकीकत। नेता एक बार चूक जाए। पर जनता नहीं चूकती। रहनुमा याद रखें तो अच्छा है।
2 comments:
सही बात।
यथार्थ और सत्य लेखन। साधुवाद।
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