पर मैं छाड़ानगर जाना चाहता था। दस हजार की आबादी वाली उस बस्ती में, जिन्हें अपराधी नगर के रूप में देखा जाता है। उनका खौफ इतना है कि रात में पुलिस भी उस बस्ती में नहीं जाती। पुलिस वैसे भी वहां तभी जाती है, जब उसे वसूली करनी होती है। छाड़ानगर में, जाहिर है, छाड़ा लोग रहते हैं। एक जनजाति, जिसे अंग्रेजों ने आपराधिक जनजाति घोषित कर दिया था। तब से यह कलंक उनके माथे पर है।
पहला भागः
छाड़ानगर को सब जानते हैं। और कोई नहीं जानता। अहमदाबाद से बिल्कुल सटा हुआ। हवाई अड्डे के रास्ते में। लेकिन सबसे कटा हुआ। कोई उस तरफ जाता ही नहीं। कुछ डर के मारे, कुछ भ्रांतियों की वजह से। छाड़ानगर का नाम लेते ही एक अजीब सी असहज स्थिति पैदा होती है। सवाल होता है कि आप वहां जाना ही क्यों चाहते हैं। पर मैं छाड़ानगर जाना चाहता था। दस हजार की आबादी वाली उस बस्ती में, जिन्हें अपराधी नगर के रूप में देखा जाता है। उनका खौफ इतना है कि रात में पुलिस भी उस बस्ती में नहीं जाती। पुलिस वैसे भी वहां तभी जाती है, जब उसे वसूली करनी होती है।
छाड़ानगर में, जाहिर है, छाड़ा लोग रहते हैं। एक जनजाति, जिसे अंग्रेजों ने आपराधिक जनजाति घोषित कर दिया था। तब से यह कलंक उनके माथे पर है। अहमदाबाद में कोई वारदात हो तो पहला शक छाड़ानगर पर जाता है। गिरफ्तारियां वहीं से होती हैं। करीब एक तिहाई आबादी इस धरपकड़ की वजह से जेल में रहती है। उनसे सवाल नहीं पूछे जाते। मान लिया जाता है कि वे अपराधी हैं। रात दस बजे मैं छाड़ानगर के बाहर था। साथ में कुछ मित्र और एक वकील। वकील साहब छाड़ा समुदाय के ही हैं। दिन में उनसे भेंट हुई थी। तभी मन बना लिया था कि छाड़ानगर जाना है। वकील अपना दुख-दर्द बता रहे थे। उन्होंने कहा ‘मैं पढ़ा लिखा हूं। वकालत की डिग्री है। अदालत से मान्यता मिली है। पर कोई मेरे पास मुकदमा लेकर नहीं आता है। मैं सिर्फ छाड़ा लोगों का वकील होकर रह गया हूं।
छाड़ानगर में स्थानीय लोगों ने हमारा स्वागत किया। दो महिलाओं ने गेंदे के फूलों की बनी माला पहनाई। हमारा पहला पड़ाव एक खस्ताहाल कमरा था। छाड़ानगर की लाइब्रेरी। पुस्तकालय में दो अखबार आते हैं। करीब पांच सौ किताबें वहां हैं। अच्छी किताबें। एक पूरा हिस्सा महाश्वेता देवी की किताबों का है। नजर पड़ी तो देखा कि वहां एक मेज पर महाश्वेता की फ्रेम में लगी तस्वीर रखी है। सामने जलती हुई अगरबत्ती। लोगों ने बताया कि महाश्वेता सचमुच की देवी हैं। उन्होंने हमारी बात की। हमारा पक्ष लिया। मुकदमा लड़ीं। वरना बूधन का मामला पुलिस ने कब का रफा-दफा कर दिया होता। उन्हीं में से एक ने स्वीकार किया कि छाड़ानगर में शराब की अवैध भट्ठियां हैं। पुलिस ने सारी अवैध भट्ठियां यहीं सीमित कर दी हैं। इससे उनकी वसूली ठीकठाक और जल्दी हो जाती है। लोगों का कहना था कि भट्ठियां उनकी मजबूरी हैं। उनके पास आमदनी का दूसरा कोई जरिया नहीं है। कोई उन्हें काम नहीं देता। झाडू पोंछे का भी नहीं।
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