
एक और किताब नोरमा खोरी की है। 'फारबिडेन लव।' वर्ष 2006 में इस किताब के छपने के बाद हंगामा हो गया। जार्डन की रहने वाली नोरमा ने किताब में अपने साथ-साथ अपनी एक दोस्त डालिया की कहानी कही है। महज 19 साल की उम्र में दोनों लड़कियों ने अपनी पढ़ाई पूरी की। उन्होंने तय किया कि वे परिवार की छाया से निकलकर अपने तईं कुछ करेंगी, उन्होंने ऐसा किया भी। अम्मान में दोनों लड़कियों ने मिलकर ब्यूटी पार्लर खोला जो शहर में अपने ढंग की एक नई चीज थी। उन्हें इस पार्लर के साथ आजादी का एहसास भी मिला, जो काम के बदले मिलने वाले पैसे के मुकाबले कहीं बड़ा था। पार्लर के पीछे एक कमरा था जहां, जब ग्राहक न हों, दोनों बैठकर दुनिया-जहान की बातें करती थीं। इसमें हकीकत से ज्यादा सपने थे। बीच-बीच में पर्स में छिपाकर लाई गई सिगरेट के कश।
एक दिन नोरमा पार्लर में नहीं थी। डालिया अकेली थी। एक पुरुष ग्राहक उनके पार्लर में आया। रायल सेना का एक ईसाई सैनिक। उसका नाम माइकल था। माइकल ने डालिया और फिर डालिया से सुने किस्से के आधार पर नोरमा के सपनों में रंग भर दिए। डालिया को एक लड़के से प्रेम था, लेकिन अम्मान की सामाजिक व्यवस्था में यह गुनाह माना जाता था। दो वर्ष तक यह राज सिर्फ डालिया और नोरमा के बीच रहा। लेकिन बाद में डालिया के भाई और उसके पिता को इसकी खबर मिल गई। डालिया की मां उनकी राजदार थीं पर घर की सामाजिक व्यवस्था में उनकी आवाज के कोई माने नहीं थे।
एक सुबह नोरमा को खबर मिली की डालिया अब दुनिया में नहीं है। उसकी हत्या कर दी गई है। हत्यारे उसी घर में रहते थे-उसके पिता और उसके भाई। लाश लाकर घर के बाहर रखी गई तो मां को ये भी हक नहीं था कि वो रो सके। सब्जी और गोश्त काटने वाले चाकू से डालिया को गोद डाला गया था। उसकी छब्बीसवीं सालगिरह के ठीक दो महीने बाद। नोरमा के लिए अब अम्मान का कोई मतलब नहीं रह गया था। उसकी सहेली दुनिया में नहीं थी। उसका सपना आधा रह गया था। उसके लिए अम्मान में स्थितियां अच्छी नहीं थी। ऐसे में माइकल ने उसकी मदद की।
नोरमा की किताब पर जार्डन में खासा विवाद हुआ। कहा गया कि यह सच्ची कहानी नहीं है। सवाल यह है कि इज्जत के नाम पर हत्या जार्डन की हकीकत है या नहीं। नोरमा का झूठ संभवतः उसी वजह से हो, जिससे अजर नफीसी ने अपनी किताब में अपने पात्रों के नाम बदल दिए।
इस्लामी दुनिया की ये किताबें एक नया नजरिया उपलब्ध कराती हैं। खासतौर पर महिलाओं की स्थिति के बारे में। बांग्लादेश की तस्लीमा नसरीन को भी इसी श्रृंखला से जोड़ा जा सकता है। लज्जा को विशेष रूप से। संभव है कि अब ऐसी किताबें सामने आएं और महिला आत्मकथात्मक लेखन को नए सिरे से परिभाषित करें। अजर नफीसी ने एक तरह से इस ओर इशारा किया। कहा कि मुझे अक्सर सपना आता है कि मौलिक अधिकार कानून में एक और अधिकार जुड़ गया है- कल्पना का अधिकार। यह संभावना हमेशा बनी रहनी चाहिए कि जिंदगियां तराशने और सपने, विचार और ख्वाहिशों को कल्पना में जोड़ने की आजादी सबको होगी। कल्पना पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा।
2 comments:
आपके विचारों के शुभ्र हिमालय को मेरी पुच्ची।
ऐसी खांटी हिंदुस्तानी रंग और काट की कहानियों के लिए कागज की सड़क पर इतनी दूर जाने की क्या जरूरत है। आप जब चाहे तब किसी आंख वाले रिपोर्टर को अपने घर से सवा सौ किलोमीटर दूर बस मेरठ से जरा सा आगे मुजफ्फरनगर भेज कर मंगा, एडिट और फिर छाप सकते हैं।
इंतजार रहेगा...।
नई नजर, उड़ती तितलियां, क्या बात है!इस्लामिक दुनिया में आ रहे बदलावों को वाकई ये किताबें बखूबी पेश करती हैं. इस्लामिक दुनिया की औरतें इस तरह आगे आती हैं तो दकियानूसी माने जाने वाली इस जमात में भी बड़ा बदलाव आएगा.
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