
जो जीता वही सिकंदर। सिंह इज द किंग। लो जीत गई और रह गई सरकार। जीत लेकिन दागदार। इसी कारण मनमोहन। शायद कम खुश ज्यादा परेशान। एक बला राजनीति। बेदाग थे तब थे गैर राजनीतिक। राजनीति तो धब्बों की सौगात। उनका नहीं कुछ लेना-देना, पर नेता को पड़ेगा सब सहना। दुखदायी रहे दस दिन। बीते दो तो और भी गए गुजरे। कटुता-फरेब। घात प्रतिघात। दुरभिसंधियां। पैसे का खुला खेल। सिद्धांत-नीति फेल। संसद में गिनती ने बाजी मारी। आगे जनता है। उसका विश्वास जीतना एक संकट भारी।
1 comment:
अफसोसजनक....
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