Monday, July 28, 2008

कुर्सी पर कब जमकर बैठेंगे शिवराज

आपकी यह मुस्कान। कर रही हैरान। चिंताग्रस्त देश। और कैसे निश्चिंत आप। आतंकवाद, नक्सलवाद। जलता कश्मीर। धधकता पूर्वोत्तर। पिछले दो दिन यानी अड़तालीस घंटे और उसमें धमाके छब्बीस। कोई पचासेक मारे गए बेमौत। निष्क्रिय सरकारें और मारे जाते निर्दोष बेचारे। भयावह संकट लेकिन नहीं बनते वे कभी आपदा पूरे देश की। प्रधानमंत्री और नेता विपक्ष। और भी देश के नेतागण महान। संकट की घड़ी में कब दिखेंगे एकजुट। चिंतातुर कब जाएंगे साथ-साथ। कब होगा चुस्त-दुरुस्त शासन। कुर्सी पर कब जमकर बैठेंगे शिवराज।

2 comments:

Prabhakar Pandey said...

सटीक, शानदार और यथार्थ। बहुत बड़ी बात कह दी आपने इन चंद पंक्तियों में।

Udan Tashtari said...

सही है.