Sunday, July 6, 2008

कि मुसीबत में उम्मीद की चादर तनी रहे..

वह चिराग-ए-चिश्त हैं। चिश्तिया विरासत की शान। शहे औलिया हैं। औलिया लोगों के बादशाह। ग़रीब नवाज़ हैं। कायम है ख्वाजा जी, महाराज की बादशाहत। जमीनी बादशाह आए-गए। बादशाहतें खत्म हुई। मोइनुद्दीन वहीं हैं। उतने ही उदार। नीयत और मंशा से बेपरवाह। उनसे उम्मीद की खेती नहीं सूखती। कोई नहीं लौटता खाली हाथ। कुछ न कुछ सबकी झोली में। लोकतंत्र में वोट और सीटों की दरकार। मन्नत मांगते हैं। चादर चढ़ाते हैं। कि मुसीबत में उम्मीद की चादर तनी रहेगी। बचा ले जाएगी। महंगाई, मुद्रास्फीति और बे-करारी से।

1 comment:

anurag vats said...

shudh sanyog se bharatnaama dikha.aapko padhne ki lalsa ab poori hogi.bahut kauch padhna hai aapka.achha laga ki is madhyam men wh uplabdh hai.maine aapki izazat liye bagair aapka link vatsanurag.blogspot.com pr diya hai.yh drasal sabad naam ki patrika hai.fursat se dekhiyega.
aadar sahit...