Monday, July 7, 2008
अजनबी और दोस्त दो शब्द नहीं रह जाते
राजनीति अनिश्चितता का नाम है। कब क्या होगा-कुछ पता नहीं। अजनबी और दोस्त दो शब्द नहीं रह जाते। एक हो जाते हैं। अजनबी दोस्त बनते हैं, दोस्त अजनबी। यह मौकापरस्ती भी है। एक साथ चलने की मजबूरी। इसके पीछे भी कुछ है। किसी को घेरने की। किसी से हिसाब बराबर करने की। अपने को सुरक्षित रखने की। भीतर ही भीतर गोटियां चली जाती हैं। एक-दूसरे पर भारी पड़ने की। करार पर मिलन बेकरारी। लेकिन यह बेजारी में न बदले। लोग बेजार हुए तो ज्यादा गड़बड़ हो सकती है।
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2 comments:
bahut badhiya post . aaj rajaneeti me yahi to ho raha hai . sach ko sundarata se ukerane ke liye dhanyawaad.
km men kya khoob khi aapne...
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