Friday, July 4, 2008

नयी नजर और उड़ती तितलियां

स्लामी देशों में औरतों के दुख-दर्द को बताती कई किताबें आयीं। इनफिडेल, थाउजेंड स्प्लेंडिड सन्स और द बुकसेलर आफ काबुल, में इन देंशों की स्त्रियों के दुखों की कई मिसालों से पिछले लेख में आप रू-ब-रू हुए। इस बार इन द नेम आफ आनर, रीडिंग लोलिता इन तेहरान और फोरबिडेन लव। इस्लामी दुनिया पर ये किताबें हमारे सामने एक नया नजरिया रखती हैं। प्रस्तुत है इस्लामी दुनिया में महिलाओं की स्थिति की पड़ताल करती कुछ किताबों पर विशेष लेख।

पहला भागः

' ईरानी इस्लामी गणराज्य के शुक्रगुजार हैं कि उसने हमें तमाम चीजें नई रोशनी में देखने की सलाहियत दी, जिसे हम आमफहम मान बैठे थे। हम इस्लामी गणराज्य के कर्जदार हैं कि उसने हमें पार्टियां करने, सार्वजनिक रूप से आइसक्रीम खाने, प्रेम करने, एक दूसरे का हाथ थामे चलने, लिपिस्टिक लगाने, ठहाका लगाकर हंसने और तेहरान में लोलिता पढ़ने का शऊर दिया।'
अजर नफीसी ने, जाहिर है यह टिप्पणी व्यंग्य में की है। वह खुद नव्बे के दशक के आखिरी वर्षों में इस माहौल से गुजरीं और अंततः मजबूरी में उन्हें अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी। तेहरान विश्वविद्यालय में अजर नफीसी को कुछ किताबें पढ़ाने पर तेहरान की धार्मिक पुलिस की ज्यादती सहनी पड़ी। उसके प्रोफेसर खफा हो गए और अंत में उन्होंने इस्तीफा दे दिया। अजर का इस्तीफा मंजूर नहीं हुआ और दो साल बाद उन्हें तेहरान विश्वविद्यालय में बुर्का न पहनने की वजह से निकाल दिया गया।
अजर नफीसी की किताब 'रीडिंग लोलिता इन तेहरान' उनकी निजी जिंदगी की दास्तान बयान करने के साथ उन सात लड़कियों की कहानी कहती है, जिन्होंने छिप-छिपाकर '1984 द ग्रेट गैट्स्बी', 'मैडम बोवेरी' और 'प्राइड एंड प्रीज्यूडिस' पढ़ी। लेकिन, सबसे ज्यादा असर 'लोलिता' का रहा। अजर कहती हैं कि इन लड़कियों के साथ 'लोलिता' पढ़ते हुए उन्हें अक्सर एक तितली का ख्याल आता है, जिसे पिन के सहारे दीवार में चुन दिया गया है। विश्वविद्यालय में सीमित किताबें पढ़ाने का बंधन तोड़ने के लिए अजर ने इन लड़कियों को अपने घर बुलाया, हर बृहस्पतिवार। कई साल तक।
इन लड़कियों में नसरीन, मन्ना, महशिद, मित्रा, सनाज, यासी और अजीन शामिल थीं। एक लड़का भी था-नीमा। किताब में ये मूल चरित्रों के बदले हुए नाम हैं। हालांकि नसरीन अब इंग्लैंड में है, यासी टेक्सस में, अजीन कैलीफोर्निया और मित्रा कनाडा में। मन्ना, महशिद और नीमा ईरान में ही हैं। सनाज का अजर ने किताब के अंत में उल्लेख नहीं किया है। अजर ने पहली बार इन लड़कियों के घर पहुंचने पर उनकी फोटो खींची थी। काले बुर्के में सर से पांव तक ढकी हुई, सिर्फ आंखें नजर आती।
दो साल बाद अजर ने इन लड़िकयों की एक और तस्वीर खींची। तब तक वे साथ-साथ कई किताबें पढ़ चुकी थीं। इस तस्वीर में लड़कियां जींस, रंग बिरंगे कुर्ते और टी-शर्ट में है। घर में दाखिल होते ही बुर्का उतार देती थीं। ये दो तस्वीरें अजर की सबसे कीमती धरोहर हैं, जिन्होंने साबित किया है कि किसी को किताब भी कितना बदल सकती है, अंदर तक।

2 comments:

vineeta said...

अच्छा लिखा है, मुस्लिम देशों मैन्माहिलाओं की यही स्थिति है, आशा है की आगे भी इस तरह के लेख पड़ने को मिलेंगे.

Advocate Rashmi saurana said...

bhut achha lekh. likhate rhe.