Saturday, July 19, 2008

चल रे घोड़े लोकतंत्र के, बिक भी, दौड़ भी

चल रे घोड़े लोकतंत्र के। सीधे चल। सरपट चल। सोच मत। दाएं-बाएं मत देख। अंग्रेजी में घोड़ा बिकता है। हिंदी में दौड़ता है। तू दोनों कर। बिक भी, दौड़ भी। राजनीति का इक्का ऐसे ही चलता है। लोकतंत्र की आत्मा होती है। अंतरात्मा नहीं होती। आत्मा बेआवाज। अंतरात्मा की आवाज पर। व्हिप का चाबुक। सरपंच पर अविश्वास। पंच बिकाऊ। पंचायत बैठेगी। सब होगा। जोड़तोड़। तोड़फोड़। सब संभव। सब चलता है। इसलिए तू भी टुटहे इक्के को संसद पहुंचा दे। चाबुक के सहारे ही सही। चल रे घोड़े लोकतंत्र के।

2 comments:

Anil Dubey said...

वाह.बहुत खूब.सुन्दर और सटिक.क्या खूब कहा है...लोकतंत्र की आत्मा होती है अंतरात्मा नहीं होती.

vipinkizindagi said...

अच्छी पोस्ट है,